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[ १५ ] मनाही' करना पाप है। तेरापन्थी इन कार्योंके करने
वालोंको कभी नहीं रोकते। १८ इन लौकिक कार्योंको मोक्ष-धर्म या आत्म-धर्म-नहीं
मानाजाता फिर भी इन आवश्यकताओंका प्रतिरोध नहीं कियाजाता।
१-बाडो कोई खोले, तामें करत मनाही वह,
साधु ना कसाई मे भी, नीच कहलात है। स्वेच्छा निज गेह भी लूटाव सर्व लोकन को, तेरापथी ताके कोई आडा नही आत है। पात्र औ कुपात्र एक मात्र तो न करे तामे खेय और ऊखर सो अन्तर बतात है। तुलमी भनन्त अन्त तन्त को विचारे ऐसे, सो ही इम काल प्रभू । तेरापथ पात है ॥
-आचार्य श्री तुलसी २-वरजणो ज्याहि रह्यो, मुनि वहरण जावे हो।
देखत मागन फकीर कू, तो पाछा फिर आवे हो । मूत्र में जिन भाखियो, तेहवो दान दिरावे हो। कोई दान कुपात्र न दिये, तो देता आडा न आवे हो ।
__सो ही तेरापन्य पावे हो॥ --आचार्य श्रीभिक्षुके सम-सामयिक तत्वज्ञ श्रावक श्री शोभजी