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। [ घ ] नहीं, यह उन्होंने नहीं कहा। सासारिक सहयोगको संसारका उपकार', संसारका कर्तव्य', लौकिक दया', आदि माननेका उन्होंने कब विरोध किया ? उनका दृष्टिकोण यही था कि राग, द्वष, मोह हिंसा है, संसारका मार्ग है। इन दोनों (संमारमार्ग और मोक्ष-मार्ग) को एक न समझाजाय। ___आचार्य तुलसीने आचार्य भिक्षुके इस दृष्टिकोणका युगकी भावनाके साथ जो सामंजस्य स्थापित किया है, यह अलौकिक दृष्टिकोण जो लोकबुद्धिगम्य बना है, वह आचार्यश्रीकी निरूपण शैली का ही परिणाम है। प्रस्तुत निबंधमे इसीके आधारपर आचार्य भिक्षुके आध्यात्मिक दृष्टिकोणको समझनेका प्रयन कियागया है। वाव (गुजरात)
-मुनि नथमल ता०२१-४-५४ १-(क) जीवाने जीवा वचाविया, हुवै 'ससारतणो उपगार'।
(अणुकंपा १२८) (ख) जीवान मार जीवान पोखे, ते तो 'मार्ग ससार नो' जाणो।
_(अणुकंपा ६२४) २-ए दान 'ससारतणो किरतब' छ, तिणमे मोक्ष रो मार्ग नाही।
(व्रताव्रत १६८) ३–लारला सुखी दुखी री कीरप करसी, आ लौकिक दया जाणो ।
• (सरधा री चौपी २२॥५४) ४-ससार मोक्ष तणा उपगार, समदृष्टि हुवै ते न्यारो न्यारो जाण ।
(अणुकंपा ११३५२)