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जैन महाभारत
सावले रग का सुन्दर युवक, मेरा भाई नकुल खंडा है, वह भी. मेरा धन है, इसकी बाज़ी लगाता हूं चलो।" - "प्रच्छा तो यह बात है, तो यह लीजिए, आपका प्यारा भाई अव हमारा हो गया " उत्साह से कहते कहते पासा फेका और बाजी मार ली।
विदुर जी चिल्ला उठे-धिक्कार है, धिक्कार है, यह मन बहलाव हो रहा है या अत्याचार। तुम लोगों की धूतंता की भी कोई सीमा है। धन दौलत, दास, दासी, हाथी घोडे और प्रजा, को हार गए, अब भाइयों की भी बाज़ी लगाने लगे ? तुम लोगोंको लज्जा आनी चाहिए। यह खेल नही, निर्लज्जता और अन्याय का स्वाग हो रहा है। सुनते हो तराष्ट्र ! 'तुम्हारे चहेते मनुष्यो को बाजी पर लगा रहे है। तुम्हारे शकुनि और दुर्योधन कौरव वंश के मुख पर कालिख पोत रहे है। इन्द्रप्रस्थ का राज्य छीन लिया अब पाण्डवो को धातु की भांति प्रयोग कर रहे हैं। धृतराष्ट्र कुल की नाक बचानी है तो उठो इन पासों को भाड़ मे फेक दो और शकुनि को निकाल बाहर करो।"
दुर्योधन जीत की खुशी मे उछल रहा था, उसे जीतने का इतना नगा था कि वह विदुर जी को ललकारने लगा-आप क्यो शोर कर रहे है ? जब खेलने वाला मनुष्यो को दांव पर लगा रहा है, तो हम क्या कर सकते हैं ?" शकुनि ने उसी समय कहा--"युधिष्ठिर को अपने भाग्य पर विश्वास है, वे यूही नहीं खेल रहे, एक ही दांव पर वह सव कुछ वापिस ले सकते हैं ?"
"भाई धतराष्ट्र ! देख नही सकते, तो सुन तो सकते हैं, वेटा शिष्टाचार को भी भूल गया, उसने लोक लज्जा को भी ताक पर रख दिया, और उधर तुम्हारे भतीजे सव खो रहे है। अब भी कुछ करो।" वदुर जी ने व्याकुल हो कर कहा।
धृतराष्ट्र बोले- "मैं तो वृद्ध हो चुका, अव मेरी कौन । सुनता है ?"