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जैन महाभारत
कितने ही परिवारो' का नाश कर डाला कितनों को राजा से । रंक बना दिया। - यह खेल नही झूठ, फरेब और कपट का दूसरा नाम जुआ है। आप तो धर्म नीति और राजनीति मे पारगत है, . फिर भी जुआ खेल रहे है, यह बात साफ बता रही है कि आप अपने को स्वय ही घोर सकटो मे फंसा रहे है ।"
, दुर्योधन ठहाका मार कर हसा और अन्त में बोला-"यह भी खूब रही। सभी धर्म और नीति सिखाने वाले हो गए । भाई भाई मे क्रोडाएं भी होती हैं. और मनोरजन भी। इस का मतलब क्या यह है कि महाराजाधिराज हैं तो भाईयो के साथ खेलने पर भी प्रतिवन्ध लग गया ?"
युधिप्टिर ने भीम को शात करके कहां-"भैया भीम ! राज वश की रीति के अनुसार मै खेलने से इन्कार नही कर सकता। फिर यह जुआ, जुए की भाति नही, भाईयो का मनबहलाव होते
____ इतने मे विदुर जी भी आगए, पांचो भाईयो ने चरण छू कर प्रणाम किया, चौसर खेलने की तैयारी देख कर विदुर जी ने संकेत से युधिष्टिर को रोकते हुए कहा-“बेटा युधिष्टिर तुम तो धर्म ग्रथों के विद्वान हों, तुम ने शास्त्रों में बताए गए त्याज्य दुर्व्यसनों को भी पढा है । तुम भी नल के इतिहास की पुनरावृति करना चाहते हो, तो खेलो और जी भर कर खेलो। क्योकि वश की उन्नति के दिन तो हवा हुए, पाण्ड्ड ने राज का विकास किया, तो तुम उसका मालियामेट कर डालो। कोई बात नही है, दुर्व्यसन तुम नहीं अपनायोगे तो नष्ट हुए दरिद्र लोग अपनायेगे क्या ?"
ताने भरी बात सुनकर युधिष्ठिर झिझकने लगे, तभी शकुनि ने कहा-"पाप भी कैसी बाते कर रहे हैं, कितने दिनों में तो युधिष्ठिर हस्तिनापुर आये हैं, इस शुभ अवसर पर मन वह लाव हो जाय तो क्या डर है ?"
इसी प्रकार की वातो से युधिष्ठिर को शकुनि और दुर्योधन ने खेलने पर तैयार कर लिया, युधिष्ठिर की आत्मा तो