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- बाजी ..
कहती थी कि यह बुरा हो रहा है, पर दिल कहता था कुछ बाज़ी खेलने मे क्या बुराई है। धन तो हाथ का मैल है, कुछ हार भी गया तो कौन सी बात है।-आखिर हृदय की बात चल गई।
और खेल प्रारम्भ हुआ, सारा मण्डप दर्शकों से खचाखच, भरा हुआ था. द्रोण, भीष्म, तथा, विदुर और धृतराष्ट्र जैसे वयो वृद्ध भी विराजमान थे। विदुर जी के मुख पर खेद और क्षोभ के भाव झलक रहे थे, भीष्म ने खेल प्रारम्भ होने से पूर्व कहा"युधिष्ठिर को चौसर पर देख कर ही मुझे बहुत दुख हो रहा है। न जाने क्यो मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आज कुछ अनर्थ होने वाला है।' उसी समय विदुर जी वोले--"और मुझे तो ऐसा लगता है कि यह बाजी इस वश के पतन का श्री गणेश कर रही है। युधिष्ठिर स्वय अपने धर्म पथ को भूल कर एक दुर्व्यसन मे अपने आप को झोक रहा है, मानो भाग्य ही उस से और हम से,रूठ रहे है ।"
द्रोणाचार्य ने कहा- "युधिष्ठिर । न जाने क्यो आज मेरा मन रो रहा है ।"
उस समय, दुर्योधन उनकी ओर आग्नेय नेत्रों से देख रहा था, क्रुद्ध होकर वोला-"तो क्या आप लोग यह नहीं चाहते कि हम दो भाई एक स्थान पर बैठ कर मनोरजन के लिए कुछ खेल भी ले "
धृतराष्ट्र ने बेटे को ढाढस बधाने और पीठ थपथपाते हुए कहा-"नही, नही मनोरजन करने या मन बहलाव से तुम्हे कौन रोकता है ? बस किसी प्रकार का -झगडा फिसाद नही होना चाहिए।" . ... . .. शकुनि मामा खेल मे हो और कोई अनहोनी घटना न घटे यह कैसे हो सकता है ?" असन्तुष्ट भीम ने कहा।
"कहिए युधिष्ठिर महाराज ! क्या इरादा है, मैदान मे