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- वाजी
मे भी शस्त्रो विद्या का पारगत नौसिखिये को परास्त कर देता है। यही बात इस खेल में भी है। · मजा हुआ खिलाड़ी कच्चे खिलाडी को हरा देता है। यह भी कोई धोखे की बात हुई.?-आप, को कदाचित हारने का भय है, इस लिए आप धर्म की आड़ ले रहे हैं।'
__युधिष्ठिर को अन्तिम बात चुभ गई, उत्तेजित होकर बोले- "र,जन् ! ऐसी बात नहीं है, आप आग्रह करते हैं तो मैं खेलने को तैयार हू, मैं राजवशो की रीति के अनुसार खेलने को , सदा तत्पर हू, पर मैं समझता उसे बुरा ही हू ।"
युधिष्ठर ने दुर्योधन के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए कहा"भाई के प्रेम पूर्ण निमत्रण को भला मैं कब अस्वीकार कर सकता हू। पर मेरे साथ खेलेगा कौन?"
__ "मेरी ओर से मामा शकुनि आप के साथ खेलेंगे, पर दाव पर लगाने के लिए रत्नादि जो धन चाहिए वह मैं दूगा- दुर्योधन वोला।
युधिष्ठिर ने सोचा था कि यदि दुर्योधन खेलेगा, तो उसे वे आसानो से ही हरा देगे, पर जब शकुनि के साथ खेलने की बात आ गई तो वे हिचकिचाने लगे, क्योकि शकुनि पुराना मजा हुआ खिलाडी है, इसे वे अच्छी तरह जानते थे। वोले-"मेरी राय है
कि किसी को दूसरे के स्थान पर न खेलना चाहिए। वह खेल के : साधारण नियमो के विरुद्ध है ।"
"अच्छा तो न खेलने का अव दूसरा बहाना बना लिया"शकुनि ने हंसते हुए कहा ।' - युधिष्ठिर भला यह कव सहन कर सकते थे, कि कोई उन्हे बहाने वाज कहें, इस लिए, उत्तेजित होकर बोले-"कोई बात नहीं
मै खेलूगा ।"
उसी समय भीम बोल पड़ा- "भ्राता जी ! पाप धर्मराज होकर क्या करने जा रहे हैं। अब आप राजकुमार नहीं महाराजा घिराज हैं । जुआ खेलना ,धर्म के प्रति कूल है। इस दुर्व्यसन ने