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________________ दुर्योधन का षड़यन्त्र हीन करना अच्छा नही जंचता ।" - . . "पिता जी ! आप तो वस उचित. तथा अनुचित के चक्कर में ही रहेगे, और शत्रु अपना काम कर जायेंगे। जब साप निकल जायेगा, तब- लकीर पीटने से क्या होगा। • श्राप इस धर्म और राज्य-नीति,को उठाकर ताक पर रख दीजिए और थोडी देरी के लिए केवल राजा बन कर सोचिए। दुर्योधन वोला । उसी समय शकुनि ने भी उसका समर्थन कर दिया-महाराज उसमे हिचकिचाने की क्या बात है ? चौसर का खेल कोई हमने तो ईजाद किया नहीं। हमारे पूर्वज भी तो इसे खेलते आये है, और कितनो ने ही इस हथियार से अपनी मनोकामना पूर्ण की है। यह एक ऐसा-शस्त्र है, जो बिना रक्त बहाये ही किसी को विजय और किसी को पराजित बना देता है। - उम मे अन्याय को तो कोई बात नही।". . . . . . । - धृतराष्ट्र बोले 'अच्छा तो मैं विदुर से और सलाह कर लूं। वह बडा बुद्धिमान है, उसकी सलाह बडी नपी तुली रहती है।" ... दुर्योधन सुन कर बोला-पिता जी । मुझे तो कभी कभी लज्जा आने लगती है कि मैं उस बाप का बेटा हू. जिसे अपनी बुद्धि पर तनिक 'सा भी विश्वास नही है। विदुर चाचा तो मुझ से-जलते है, चे पाण्डवो से ही स्नेह रखते है, वे भला आप को ऐसी कोई सलाह क्यो देंगे जिस मे मेरा लाभ और पाण्डवो की हानि होम वे तो आप को उपदेश देगे और अपने उपदेशो से आप को शांत कर देंगे". . . . . । .. शकुनि ने भी कहा -"राजन् ! आप राज्य के स्वामी है; आप को किसी की सलाह के मोहताज नही रहना चाहिए। यह दुनिया वडी चालबाज है। लोग अपने अपने स्वार्थों की रक्षा और अपने चहेतो के भले के लिए ही कोई सलाह दिया करते हैं। क्या प्रापको अपने बेटे से अधिक विदुर जी पर विश्वास है।" तात्पर्य यह है कि दुर्योधन और शकुनि ने धृतराष्ट्र को अपनी बात मनवा ही दी धृतराष्ट्र ने वायदा,कर लिया कि युधिष्ठिर को - 1
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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