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________________ जैन-महाभारत: सके, किया जाना उचित है- तलवार- और बाण ही. तो शस्त्र नहीं है, . प्रत्येक वह साधन -शस्त्र की गणना में ही आता है, जिस से विरोधो को परास्त किया जा सके। किसी के कुल या जाति से . यह नही जाना जाता कि वह शत्रु है अथवा मित्र जो भी हृदय को दुख पहुचाये, और जो भविष्य के लिए सकट खड़ा कर सकता है, वहीं शत्रु है, फिर चाहे वह सगा भाई ही क्यो न हो । सन्तोष कीसीख तोआदमी. को-पगु बनाने के लिए दो. जाया करती है, क्षत्रिय यदि सन्तोष करने लगे तो फिर उनके शस्त्रो को जग खा- जाये--और वे कभी अपने राज्य व शक्ति का विस्तार न कर सके। सब से अच्छा क्षत्रिय वह है जो भीवी सकट को पहले से ही यह पहचाने और जो भविष्य मे दुखदायी हो सकता है, इससे पहले कि वह उस योग्य हो,' पहले ही दबोच कर ठण्डा करदे । - मुसीवत की पहले से ताड़ कर उसे रोकना ही बुद्धिमातो का कर्तव्य है । 'पिता जी !: वृक्ष की जड मे चीटियों का बनाया हुआ विल जिस प्रकार एक दिन सारे वृक्ष के ही नाश का कारण बन जाता है उसी प्रकार हमारे भाई भी एक दिन हमारे नाश-का कारण बनेगे, इसलिए क्षत्रियो के धर्म का पालन का प्रत्येक सम्भव उपाय से उन को शक्ति कम करना हमारा कर्तव्य है। फिर हम उन्हे भूखोथोड़े ही मारने वाले है, उन्हे उतनी ही छूट देगे, उतने ही साधन उन्हें प्राप्त होगे, जिससे वे सुख पूर्व जीवन व्यतीत करे पर हमारे नाश का कारण न बने ।" - दुर्योधन की बात समाप्त होते ही शकुनि वोल उठा-"राजन् ! श्राप बस युधिष्ठिर को खेलने का निमत्रण देदे । राज रीति अनुसार वह अवश्य ही तैयार हो जायेगा, शेप सारी जिम्मेवारी मुझ पर छोड दे। दुर्योधन ने फिर कहा-पिता जी! बिना किसी प्रकार के जोखिम और युद्ध तथा रक्त' पात के शकुनि मामा पाण्डवो की सम्पत्ति जीत कर मुझे देने को तैयार है. आप इस अवसर से. लाभ उठाइये। यदि ऐसे सुन्दर अवसर पर भी आप ने कायरता दिखाई तो फिर समझ लीजिए, ऐसा स्वर्ण अवमर फिर नही आने वाला। - धतराष्ट्र बोले- वेटा!"मुझे इस प्रकार पाण्डवों की सम्पत्ति
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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