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________________ जैन महाभारत उस पर बहुत धन व्यय किया, है ।" . . . दुर्योधन न चाहते हुए भी जाने से इंकार न कर सको, अपने अन्य संगी साथियों के साथ वह 'भीम के साथ महल देखने चल पड़ा। जिस समय दुर्योधन और उस के साथी महल के आगन में 'पहुचे उस समय द्रौपदी उसके ऊपर खड़ी थी। दुर्योधन ने ज्यो ही अन्दर प्रवेश किया तो सामने नील मणि के फर्श को देखकर वह समझा जल है, इस लिए उसने जूते निकाल कर वस्त्र ऊपर कर लिए। देखने वाले दुर्योधन की इस भूल पर हस पड़े, और ऊपर खड़ी द्रौपदी भी खिल खिला कर हस पडी। लोगो और द्रौपदी के हसने से दुर्योधन को बडा क्रोध आया भीम उसी समय बोल पड़ा-भाई साहब, वस्त्र सभाल रहे हो, किसी से मल्ल युद्ध तो नही करना।" क्रुद्ध दुर्योधन बोला-'क्या तुम मुझे यहां डुबा मारने लाट 'हो ? महल है या तालाव घर ।" भीम ने हस कर कहा-"भाई साहब ! यह जल नहीं नील मणि से आपकी दृष्टि धोखा खा गई है ।" । दुर्योधन को अपनी भूल पर बड़ी लज्जा आई। उसने अपने वस्त्र नीचे कर लिए, जूता पहन लिया और आगे बढ़ने लगा। खीझ मिटाने के लिए वह सर्व से आगे तीव्र गति से चला, उसके 'पीछे था दुःशासन । कुछ दूर जाकर दुर्योधन धंडाम से जल कुण्ड मे गिर पडा। दर्शक हंस पडे, दुशासन भी गिरते गिरते 'बाल वाल वचा। भीम ने कहा- "भाई साहब ! ऐसी जल्दी क्या थी स्नान करने को ही जी चाहता था तो आप मुझ से कहते। आप के लिए सव प्रवन्ध हो जाता। यहां तो आप ने वस्त्रों सहित हो जल मे छलांग लगा दी।" दुर्योधन को क्रोध भी आया और लज्जा भी ईि। भीम ने उसे बाहर निकाला। ऊपर खड़ी द्रौपदी ठहाका मार कर हस पडा।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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