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अद्भुत महल
दुर्योधनं जल रहा था, पर बेचारा स्वयं लज्जित भी था, भीम ने ऐसे दूसरे कपडे दिए, कपडे बदल कर वह फिर भवन की सैर करने लगा.. . ..
एक स्थान पर उसे द्वार दिखाई दिया, दुर्योधन ने उस ओर पग वडाया, भीम ने उसी दम कहा-जरा ध्यान से देखिये, कही दीवार से मत टकरा जाना।
दुर्योधन ने कहा-'तो तुम ने मुझे मूर्ख ही समझ रखा है।" वह यह कह कर आगे वढा ही था कि सिर दीवार से जा टकराया द्रौपदी. देखते ही हस पडी। और बौली
डिंगोरी पकड़ कर कोई करो इम्दाद अन्धे की न हो अन्धा यह क्यो, मांखिर तो हैं औलाद अधे की ।
सुनते हैं धृतराष्ट्र अन्धे है, पर लगता है उनके पुत्र भी अन्वे ही है ।
दुर्योधन ने एक बार अग्नेय नेत्रो से द्रौपदी की ओर देखा श्ररि वह अपने क्रोध को न रोक सका, वही से माथा सहलाते हुआ वोला-"कोन अधा है, तुझे शीघ्र ही पता चल जाएगा, जिन आँखो म हर्प ठाठे मार रहा है, एक दिन उन्ही से अश्रुसिन्चु फूट पडेगा, तव तू अन्धे को ही याद करेगी ."
भीम ने दुर्योधन को क्रोध करते देखा तो झट से बोल उठाभ्राता जो ! द्रौपदी आपकी भाभी है। परिहास करने का तो उसे अधिकार हैं । श्राप तनिक सी बात पर ऋद्ध हो गए। जाने भी दीजिए।"
कुध दुर्योधन मौन हो कर भीम के साथ आगे बढा । भीम न द्वार की ओर सकेत करके कहा-यह है द्वार। आप इस के द्वारा अन्दर जा सकते हैं।" _ यह द्वार तो दीवार जैना दीखता था. दुर्योधन ने गेप पूर्ण मोहमते हुए कहा--- "यम बस, मुझे मूर्व न बनायो। दीवार को में दार नहीं समझ सकता। अन्धे राह पर अन्धा नहीं, नीम