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________________ कर्ण का वध ५८३ पाखें तुम्ही पर हैं । यदि तुम धीरज खो दोगे तो कैसे काम चलेगा? वह देखो अर्जुन तुम्हारा बध करने की इच्छा से वाण वर्षा - कर रहा है ।" इतना सुनते ही कर्ण को होश आया । और वह क्रुद्ध होकर अर्जुन पर टूट पडा । - दुर्योधन दु शासन को मृत्यु के कारण बहुत ही शोक विह्वल था वह चिन्ता मग्न खडा था, अश्वस्थामा उसके पास आया और बोला-“भैया दु शासन का जिस प्रकार बध हुआ, उसे देखकर ही रोगटे खड़े हो जाते हैं । भोम ने बडा ही अमानुषिक व्यवहार किया है जो हो, अव हमारे लिए युद्ध बन्द कर लेना ही उचित है । आप पाण्डवो से सन्धि कर लीजिए।" . सन्धि का नाम सुनते ही दुर्योधन का खून खौल उठा और ऋद्ध होकर बोला , प.पो भीम सेन ने जगली पशुयो सा व्यवहार किया और तुम कहते हो उन लोगो से मैं सन्धि कर लू जो ऐसे असभ्य है जिन्हो ने मेरे भाईयो को जयद्रथ को और मेरे सेना पतियों को मार डाला। नही मैं लड गा । अन्तिम समय तक लडता रहूगा।" उसके सिर पर तो मृत्यु नाच रही थी, वह भला कैसे मानता आवेश मे आकर उसने पाण्डवो पर भयकर आक्रमण कर दिया । x कर्ण और अर्जुन मे भीषण सग्राम छिडा था । दोनो ही टक्कर के महारथी थे। कर्ण ने एक ऐसा वाण चलाया जो काले नाग की भाति विष की आग वरसाता हुमा अर्जुन को ओर चला । श्री कृष्ण ने जब देखा कि सर्पमुखास्त्र अर्जुन की ओर आ रहा है, तो उन्होने युक्ति पूर्वक रथ नीचा कर लिया और वह अस्त्र अर्जुन के मुकुट को गिराता हुआ निकल गया । यदि श्री कृष्ण ऐसा न करते, ता वह अस्त्र अर्जन के प्राण ले लेता । अर्जन को इस बात से वडा क्रोध आया और उसने बड़ी तीन गति से वाण वर्षा प्रारम्भ कर दी। इतने मे ही समयवश कर्ण के रथ का एक पहिया अचानक धरती मे धस गया । कर्ण घबरा गया और बोला - "अर्जुन ! मेरे रथ का पहिया कीचड़ मे धस गया है, तनिक ठहरो मैं उसे कीचड़ से निकाल
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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