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________________ ५८४ जैन महाभारत कर सूखी धरती पर रख दू । तुम तो धर्म-युद्ध के धनी हो । युद्ध धर्म को निभा कर तुमने जो यश कमाया है, उसे कलकित न करना तनिक बाण वर्षा वन्द करलो।" । श्री कृष्ण ने चिढकर कहा-"अरे वाह रे । धर्म के ठेकेदार जव अपनी जान पर बन आई तो तुम्हें धर्म याद अाया, पर जब द्रौपदी को अपमानित करा रहे थे, तब तुम्हे धर्म याद नही आया ? नौ सिखिये युधिष्ठर को कुचक्र मे फसाते समय तुम्हे धर्म याद नही आया । दुधमुए बालक अभिमन्यु को तुम सात महारथी घरकर मार रहे थे तब तुम्हे धर्म याद क्यो नही आया ?" श्री कृष्ण की झिडकी सुनकर कर्ण को कुछ कहते न बना और वह अपने अटके हुए रथ पर से ही युद्ध करने लगा। उसने एक बाण बडा ही ताक कर मारा, जो अर्जुन को जा लगा जिससे अर्जुन कुछ देरि के लिए विचलित हो गया। बस इस समय का ही उपयोग करने के लिए कणं झट से कूद पडा, रथ का पहिया कीचड से निकालने के लिए। उसने भरसक प्रयास किया पर उस का भाग्य उससे रूठ चुका था, पहिया हजार प्रयत्न करने पर भी न निकला। यह स्थिति देख श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा-"पार्थ ! इस सुन्दर अवसर को हाथ से मत जाने दो।" और अर्जुन ने वाण वर्षा प्रारम्भ करदी । कर्ण ने उस समय परशुराम से सीखी विद्या को प्रयोग करना चाहा · पर उसे वह याद न रही। और अर्जुन के एक बाण ने उसका सिर धड से अलग कर दिया।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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