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द्रोणाचार्य का अन्त
अधर्म पूर्वक मरवा दिया। इसी बल पर विद्वान तथा नीतिवान वनते हो ?"
एक तो वह अश्वस्थामा की मृत्यु का मिथ्या समाचार सुन कर ही खिन्न हो रहे थे, इन शब्दो से वे और भी दुखित हो गए। उन्होने अपने शस्त्र फेक दिए । अपने को उन्होने युद्ध करने मे असमर्थ पाया । तभी धृष्टद्युम्न ने दौड़ कर उनका सिर काट डाला। और द्रोणाचार्य ससार से उठ गए। '
कौरवो की सेना मे हाहाकार मच गया और पाण्डव सेना अानन्द मनाने लगी। परन्तु युधिष्ठिर बहुत दुखित थे। .
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