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________________ ५ こ -५७८ साम्राज़ रह जायेगा । इसलिए जहा अपना यश बढाने के लिए मैंने 1 अपने भ्रातालो तथा अपने सहयोगियों को यातनाए पहुचाई हैं, वहा आज अपने यश को हानि पहुंचाने का एक कार्य करके मैं इतने प्राण 'बचा सकता हू । अपने परिवार की रक्षा कर सकता हू, और अन्याय F 1 1-7 " का सिर नीचा होने का रास्ता खोल सकता हूँ " Tam यह सोच कर वे बोले "ठीक है, इस असत्य भाषण द्वारा द्रोण को मैदान से हटाने का अपयश में अपने ऊपर लूगा । श्री कृष्ण की बताई युक्ति हमे पानी ही चाहिए ।" ५ "" जैन महाभारत 1 इस प्रकार धर्मराज युधिष्ठिर असत्य भाषण, द्वारा शत्रु को परास्त करने को तैयार हो गए। और फिर तो सभी पाण्डव पक्षीय वीर उसके पक्ष में हुए । भीम सेन को एक उपाय और सूझा। उसने अपनी गदा, से, अश्वस्थामा हाथी को मार डाला, और जोर जोर से चिल्लाने लगा -- "अश्वस्थामा को मैंने मार डाला, अश्वस्थामा मारा गया ।" =*/* ;F }, जव यह शब्द द्रोणाचार्य के कान में पड े तो वे सन्न रह गए। उन्होंने पुन ध्यान से सुना और निकट ही खंड़ युधिष्ठिर से पूछा"युधिष्टिर क्या यह संहो है कि प्रश्वस्थामा मारा गया ।" " • + 1 * उस समय युधिष्टिर जी कडा करके कह गए - 'हां यह ठीक 'है कि श्वस्थामा' मारा गया, 'उसी समय उन्हे धर्म की ध्यान आया और वे धीरे से वोले - " परन्तु मनुष्य नही वरनं हाथी" इन शब्दो ' कों द्रोणाचार्य के कानो मे न पड़ने देने के लिए, पाण्डव पक्षीय निकों ने उसी समय ढोल, मृदग और शख बजाने आरम्भ कर दिए और उनकी ऊंची आवाज मे युधिष्ठिर की आवाज दब कर रह गई। fr T NO फिर तो द्रोणाचार्यं शोकातुर होकर खड़े के खडे रह गए । इस समाचार से उन्हें इतना धक्का लगा कि वे शस्त्र' सुध बुध खोकर लंडना भूल गए और अपने हृदय को सम्भालने की चेष्टा करने लगे । तभी भीम सेन ने आकर उन्हे वडी जली कटी सुनाई । बोली"कहिए ब्राह्मण श्रेष्ट ! अपना धर्म छोड़ कर क्षत्रियो का धर्म अपनाया और वह भी अन्याय का पक्ष लेने के लिए ?' कहा गई आप की नीति आपका धर्म ? आप ने बेचारे श्रभिमन्यु वालकं को
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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