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साम्राज़ रह जायेगा । इसलिए जहा अपना यश बढाने के लिए मैंने
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अपने भ्रातालो तथा अपने सहयोगियों को यातनाए पहुचाई हैं, वहा आज अपने यश को हानि पहुंचाने का एक कार्य करके मैं इतने प्राण 'बचा सकता हू । अपने परिवार की रक्षा कर सकता हू, और अन्याय
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का सिर नीचा होने का रास्ता खोल सकता हूँ
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Tam यह सोच कर वे बोले "ठीक है, इस असत्य भाषण द्वारा द्रोण को मैदान से हटाने का अपयश में अपने ऊपर लूगा । श्री कृष्ण की बताई युक्ति हमे पानी ही चाहिए ।"
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"" जैन महाभारत
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इस प्रकार धर्मराज युधिष्ठिर असत्य भाषण, द्वारा शत्रु को परास्त करने को तैयार हो गए। और फिर तो सभी पाण्डव पक्षीय वीर उसके पक्ष में हुए । भीम सेन को एक उपाय और सूझा। उसने अपनी गदा, से, अश्वस्थामा हाथी को मार डाला, और जोर जोर से चिल्लाने लगा -- "अश्वस्थामा को मैंने मार डाला, अश्वस्थामा मारा गया ।"
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जव यह शब्द द्रोणाचार्य के कान में पड े तो वे सन्न रह गए। उन्होंने पुन ध्यान से सुना और निकट ही खंड़ युधिष्ठिर से पूछा"युधिष्टिर क्या यह संहो है कि प्रश्वस्थामा मारा गया ।"
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* उस समय युधिष्टिर जी कडा करके कह गए - 'हां यह ठीक 'है कि श्वस्थामा' मारा गया, 'उसी समय उन्हे धर्म की ध्यान आया और वे धीरे से वोले - " परन्तु मनुष्य नही वरनं हाथी" इन शब्दो ' कों द्रोणाचार्य के कानो मे न पड़ने देने के लिए, पाण्डव पक्षीय निकों ने उसी समय ढोल, मृदग और शख बजाने आरम्भ कर दिए और उनकी ऊंची आवाज मे युधिष्ठिर की आवाज दब कर रह गई।
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फिर तो द्रोणाचार्यं शोकातुर होकर खड़े के खडे रह गए । इस समाचार से उन्हें इतना धक्का लगा कि वे शस्त्र' सुध बुध खोकर लंडना भूल गए और अपने हृदय को सम्भालने की चेष्टा करने लगे । तभी भीम सेन ने आकर उन्हे वडी जली कटी सुनाई । बोली"कहिए ब्राह्मण श्रेष्ट ! अपना धर्म छोड़ कर क्षत्रियो का धर्म अपनाया और वह भी अन्याय का पक्ष लेने के लिए ?' कहा गई आप की नीति आपका धर्म ? आप ने बेचारे श्रभिमन्यु वालकं को