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जैन महाभारत ,
तभी सात्यकि को होश आया और उसने चारो ओर देखा । अपने अपमान से क्रोध के मारे वह जल रहा था, उसने आव देखा न ताव, तलवार से ध्यान मग्न भूरि श्रवा का सिर कोट दिया।
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1 अर्जुन जयद्रथ की खोज मे चारो ओर रक्त की नदिया बहाता फिर रहा था, पर कही जयद्रथ नजर ही न आता था । तब वह चिन्तित होकर बोला "सखे ! सूर्य अस्त होने वाला है और जयद्रथ कही दिखाई नही देता ! क्या करू ? क्या मैं अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण न कर पाऊगा?”
श्री कृष्ण ने पश्चिमी दिशा की ओर देखा । वे भी चिन्ता . मग्न हो गए और कुछ ही देरि मे सूर्य प्रकाश लुप्त हो गया। कौरव -सेना मे हर्ष छा गया और पाण्डव सेना का एक एक महारथी और सैनिक चिन्ताकुल हो गया । स्वय अर्जुन दु.ख के मारे शिथिल हो गया। .
तभी जयद्रथ प्रानन्द के मारे उछलता हा सामने आ गया और बार बार पश्चिम की ओर देखने लगा । तभी श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा- "पार्थ ! वह देखो जयद्रथ प्रफुल्लित होकर वारम्वार 1 पश्चिम को ओर देख रहा है.।, बस इसी समय निशाना बाधकर , ऐसा वाण मारो, जो उसके सिर को काटता हुआ निकल जाये । हा
देखो वह अपना देवी, अभिमन्त्रित बाण चलाना, ताकि वह सिर । काटता हुआ निकल ही न जाये, बल्कि सिर को लेजा कर जयद्रथ के पिता की गोद मे गिराये ।"-. . .
श्री कृष्ण ने एक ऐसा बोर्ण पहले ही जयद्रथ बध के लिए रख छोड़ा था, श्री कृष्ण की आज्ञा पाकर उसी बाण को गाण्डीव पर "चढाकर अर्जुन ने मारा, और बाण जयद्रथ का सिर 'उड़ाता हुआ निकला । जयद्रथ का सिर उस वाण की मार से कट कर उसके बाप "की गोद मे जाकर पडा। और जब उसका बाप शोकातुर होकर 1 उठा तो सिर भूमि पर गिर पडा और उसके सिर के सौ टुकड़े
हो गए। । इधर ज्यो ही जयद्रथ का सिर कटा, त्यो ही सूर्य चमक 1 उठा । इस अद्भुत चमत्कार को देख कर सभी चकित रह गए।