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जयद्रथ वध
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तरह भूरि श्रवा के हार्थो मे फसा है तुम्हे इस समय इस सम्बन्ध मे तटस्थता नही बरतनी चाहिए।" _ ज्यों ही अर्जुन ने सात्यकि की ओर देखा, उस समय सात्यकि नोचे पडा था और भूरि श्रवा उसके शरीर को एक पांव से दवा कर दाहिने हाथ मे तलवार लेकर उस पर वार करने को उधत था। यह देख अर्जुन से न रहा गया। उसने उसी क्षण तान कर बाण चलाया । बाण लगते ही भूरि श्रुवा का दाहिना हाथ कटकर तलवार सहित दूर भूमि मे जा गिरा।
___ हाथ कटे हुए भूरि श्रवा ने पीछे मुड़ कर अर्जुन को देखा __ तो क्रुद्ध होकर बोला :
___“अरे, कुन्ती पुत्र, मुझे तुम से ऐसे अवीरोचित कार्य की पाशा न थी जब मै दूसरे से लड रहा था, तुम्हारी ओर देख तक न रहा था, तो तुमने पीछ से मुझ पर आक्रमण क्यो किया ? ऐसा अधार्मिक, अनियमित और अवीरोचित युद्ध करना तुम्हे किसने सिखाया, कृप ने या द्रोण ने ? मैं जानता हू कि क्षत्रियो को कलकित करने वाला यह कृत्य तुमने स्वय नहीं किया होगा, अवश्य ही तुम्हे श्रा कृष्ण ने उकसाया होगा? वही है ऐसे अधर्मो के मूल ।" ।
___ इस प्रकार भूरि श्रवा के मुख से अपनी और श्री कृष्ण की . निंदा सुनकर अर्जुन ने कहा-“भूरि श्रवा ! दूसरे के मुंह पर थूकने से पहले अपना मुह पानी मे देख लिया होता । तुम मेरे दाहिने हाथ सात्यकि का वध कर रहे थे, जब कि वह निशस्त्र था और भूमि पर पडा था । तुम्हारे इस अधर्म को मैं सह लेता, तो क्यो ? वह कृत्य तुम्हारा कौन सा ही धर्म के अनुसार था ? और जब अभिमन्यु बुरी तरह थक गया था, निःशस्त्र था, उसका कवच फट गया था, तब कई महारथियो द्वारा चारो ओर से घर कर उस निहत्थं बालक को मारना कौन से धर्म के अनुसार उचित था ? हमारा नाश करने के लिए तुम धर्म को भूल जाते हो, और जव तुम्हारे अधर्म को हम रोकते है तो तुम धर्म का दुहाई देते हो । वृद्धावस्था मे क्या बुद्धि भी गवा ली है ?"
भूरि श्रवा सुनकर मौन रह गया और प्रायश्चित करने के लिए वह वही एक स्थान पर पामरण अनशन कर के बैठ गया।