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जैन महाभारत
के सम्वन्ध मे शकित हो जायेगा और सन्धि के लिए तैयार हो जायेगा सम्भव है कि जयद्रथ की समाप्ति पर ही इस युद्ध की समाप्ति हो जाय । मैं राज्य का न्यूनतम भाग लेकर भी. सन्धि कर सकता है। फिर हम दोनो, कौरव तथा पाण्डव भाईयों की भाति प्रेम से रहने लगेगे।" .
इधर युधिष्ठिर के मन मे.ऐसे विचार उठ रहे थे, उधर भीम तथा कर्ण मे भयकर सग्राम हो रहा था। कर्ण ने भीम का रास्ता रोक कर कहा-अरे मूर्ख ! तू भी अर्जुन के साथ ही यमलोक जाने के लिए यहां पहुंच गया ?"
भीम कर्ण के शब्दो को सुन कर क्रुद्ध हो गया और आवेश में आकर उस पर टूट पडा वडा ही भय कर सग्राम होने लगा । भीम के वाणों से कर्ण का धनुष टूट - गया । उसने दूसरा धनुष उठाया, पर भीम ने उसे भी तोड दिया । फिर कर्ण ने एक और धनुष उठा लिया, और बाण वर्षा प्रारम्भ करदी । भीम सेन ने उसका रथ तोड डाला और घोडो व सारथि को मार डाला। दुर्योधन ने अपने दो भाईयो को कर्ण की रक्षा के लिए भेजा । परन्तु उनको भीम ने, काल का ग्रास बना दिया। ..
इस प्रकार दुर्योधन के कई भाईयों को भीम सेन ने मार गिराया। और कर्ण को बुरी तरह घायल कर दिया । दुर्योधन को कर्ण की दशा देखकर बडो चिन्ता हुई । 'उसने वार वार अपने भ्रातानो को कर्ण की रक्षा को भेजा, पर प्रत्येक भीम के हाथों मारा गया । कर्ण पहले तो शात भाव से लडता रहा और वार वार
से शब्दो का प्रयोग करता रहा, जिन से भीम विचलित हो जाता वह आवेश मे आ जाता और पागल हाथी की भाति प्रहार करता, परन्तु अन्त मे कर्ण का मन दुर्योधन के भाईयो का वध होने के कारण क्रुद्ध हो गया। उसने जी तोड कर युद्ध आरम्भ कर दिया।
भीम सेन ने कर्ण के कई रथ तोड डाले । अनेक धनुप काट डाले और बार बार ऐसे भीपण प्रहार किए जिनसे कर्ण के प्राणों पर या वमती । कर्ण था वडा हो यशस्वी-प्रतापी योद्धा । वह अपनी रक्षा कर लेता । अन्त मे कर्ण ने कुपित होकर भीम सेन- के रथ को तोड डाला । उसके रथ के घोडो, और सारथि को मार डाला।