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जयद्रथ वध
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भीम सेन ने एक आज्ञाकारी अर्जुन की भांति कहा-"आप को आज्ञा सिर-यांखो पर । मै जाता है और वहा यदि अर्जुन भईया पर कोई सकट होगा तो अपने प्राण देकर भी उन्हे सकट-मुक्त करूगा । पर आप अपने को सम्भाले रहे । कही ऐसा न हो कि अर्जुन की चिन्ता ही मे आप अपने को भूल जायें और शत्रु का दाव चल जाय । और ऐसा भी न हो कि आप मेरो तरह किसी और को भी मेरे पीछे पीछे ही भेज दें, और शत्र के लिए मैदान साफ हो जाये।"
"तुम निश्चित रहो भीम ! मैं सावधान हू । हाँ, तुम ज्योही अर्जुन के पास पहुचो और वह कुशल से हो तो सिंह-नाद करना। मैं तुम्हारे नाद को सुनकर समझ लू गा कि अर्जुन सकुशल है ।"युधिष्ठिर वोले।
__भीमसेन ने अपने रथ मे आवश्यक अस्त्र-शस्त्र रक्खे और जाने से पूर्व धृष्टद्युम्न को पास बुलाकर कहा-महाराज युधिष्टिर अर्जुन के लिए बड़े चिन्तित हैं। उनकी आज्ञा से मैं उसकी सहायता के लिए जा रहा हू।. राजा की आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है इसलिए मैं यह जानता हुग्रा भी कि अर्जुन भैया सकुशल होगे और शत्रु को कोई शक्ति भी उनका कुछ नही बिगाड़ सकती, मैं उस ओर जा रहा हूं! अब मै महाराज की रक्षा का भार तुम पर सौंपता हू द्राणाचार्य की प्रतिज्ञा तो तुम्हे ज्ञात ही है । उनसे सावधान रहना ।"
__ "तुम विश्वास रक्खो जव तक मेरे शरीर मे प्राण है, महाराज के पास भी कोई नही फटक सकता ..।" धृष्टद्युम्न ने अाश्वासन देते हुए कहा ---और भीम सेन का रथ कौरव सेना की ओर तीन गति से वढने लगा!
___ भीम के रथ को अपनी ओर आते देख - कौरव-सेना मे कोलाहल मच गया। सब ने उसका रास्ता रोक लिया, पर भीम सेन की वाण वर्षा के आगे किसी की न चली। रक्त की नदिया बहाता हुआ, कौरव सैनिको के शवों पर से बढाता हुया भीम सेन आगे वढता गया । धृतराष्ट्र के ग्यारह वेटों को उसने यम लोक पहुचाया।
भीम इस प्रकार कौरव-सेना का संहार करता करता दूर निकल गया और आगे जाकर उसका वास्ता पड़ा, द्रोणाचार्य से।