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________________ ५६६ जैन महाभारत कर दिए । पाण्डव सेना की पक्तिया कई जगह से टूट गई और उन्हे पीछे हटना पड गया। यह देख युधिष्ठिर बड़े चिन्तित हुए।' . . युधिष्ठिर पुन चिन्तित हो उठे । बोले - "अर्जुन अभी तक लौटा नही और सात्यकि की भी कोई खबर नहीं आई और उधर से बार बार पाँचजन्य की ध्वनि पा रही है, गाण्डीव की टंकार सुनने को मेरे कान बेचैन हा रहे है, टकार सुनाई हो, नहीं देती। मेरा मन शका के मारे काप रहा हे , न जाने क्यो - मुझे चिन्ता हो रही है। कहीं मेरे प्रिय भ्राता अर्जन पर कोई सकट तो नहीं आ गया। भीमसेन ? मै बहुत चिन्ताकुल हो रहा हू । मेरी समझ मे ही नहीं आता कि क्या करू ?" युधिष्टिर को इस प्रकार , व्याकुल देखकर भीम सेन-भी चिन्ताकुल हो गया, उसने कहा- “महाराज !. यद्यपि मैं आपको चिन्ता रहित करने के लिए आपकी प्रज्ञानुसार सब कुछ करने को तत्पर हूं। तो भी मै अपकी चिन्तानिमूल समझता हूं' क्योकि प्रिय भ्राता अर्जुन का कुछ विगाड सके, ऐसा तो मुझे कोई दिख ई नहीं देता ' आपको मैने कभी इतना अधीर होते नहीं देखा । आप निश्चिन्त रहिए अथवा मुझ से बताईये कि क्या करू" । ! "भैया ! न जाने क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है तुम तन्त जागो और , अर्जुन की खबर' लो"-युधिष्ठिर बोले.! . "मेरे लिए तो अर्जुन की खबर लेना भी उतना आवश्यक है जितना आपको रक्षा करना । सात्यकि आपकी रक्षा का भार मुझ पर छोड़ कर गए है, अब आप ही बताईये कि मैं क्या करू. ? अापकी आज्ञा का पालन करू या आपके प्रति अपने कर्तव्य को, पूर्ण करने के लिएयही रहूं ?"-भीम सेन ने कहा। "तुम मेरी चिन्ता न करो। मुझे यहां कोई खाये नही जा रहा । अर्जुन के प्राण बहुत मूल्यवान हैं। उसकी रक्षा पहले करो। वह है तो हमारे लिए सब कुछ है । वह न रहा और तुमने मेरे प्राणों की रक्षा कर लो तो भी सब कुछ चौपट हो जायेगा । मैं जो कुछ. कहता है वही करो। तुरन्त अर्जुन की सहायता को पहुंचो।" युधिष्ठिर ने व्याकुल होकर कहा उस समय यह साफ जाहिर हों रहा था कि अर्जुन के प्रति उन्हे कितना स्नेह है। ...
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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