________________
जरासन्ध वघ
बलराम भी शोध गति से वाण बरसा रहे थे। दोनो के वाणो को वर्षा से जन्ससिन्ध के पुत्र मारे गए। जब जरामित्व की दृष्टि उस ओर गई तो उस ने अपने पुत्रों की हत्या का बदला लेने के लिएबलराम को घेर लिया । और गदा का प्रहार किया, जिस से वलराम व्याकुल हो गए, पुन गुदा मारने को उठाई तो अर्जुन की दृष्टि उस पर चली गई अर्जुन बीच मे कूद पडा और भयकर युद्ध. 1 करके वलराम को बचा लिया ।
●
क
४५
'जरासन्ध ने श्री कृष्ण को निकट देखकर कहा - ""तुम इतने दिनो अपनी चतुराई से मेरे हाथो से बचे रहे तुम्हारी सरी माया. समाप्त हो जायगी । की प्रतिज्ञा पूरी करू गा ।"
पर ग्रेब मेरे हाथों ग्राज मैं जीव यशा
श्री कृष्ण बोलें. 'यह तो अभी ही पता चल जायेगा कि जीव यंगा को प्रतीज्ञा पूर्ण होगी या एवता मुनि की भविष्य वाणी । तनिक दो दो हाथ हो कर ।"
7
1
5
I
जर सिन्ध ने गरज कर कहा - में जरासिन्ध हू जिस ने कभी पराजित होकर नही जाना, मेरे नाम से सारा समार कांपता है ! ग्वालो मे खेलने वाला मेरा क्या सामना करेगा ?"
उतना कह कर उस ने श्री कृष्ण पर वाण वर्षा आरम्भ करदी, पर श्री कृष्ण उस के बाणो की अपने बाणो के बीच ई हो मे काट देते। कितने ही समय तक वाणी से युद्ध होता रहा. अन्त मे जयसिन्ध ने चक रन्न चलाया
उसे चलता देख कर ही यादव सुभट भयभीत हो गए, पान्डवो और यादवों ने मिलकर
1,
す
उसे काटने के कितने ही यत्न किये पर कोई बार न बनाई। यासिर चक्र ग्राकर श्री कृष्ण के शरीर में लग गया पर रो का स्वर्ण होना था, कि चक्र गेंद की भाति हो गया, श्री कृष्ण को कोई नोट ही नई इस बात को देखकर जगमिन्न की प्रां फैन मो गई, उस की समझ मे हो न आया कि चत्र रत्न ने श्री कृष्ण पर क्यों न कटा ।
ह
श्री कृष्ण ने उसी नय को अपने हाथ में लिया, और गरज