SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन महाभारत सेना. मे आतक छा गया ॥ सभी भयभीत हो गए, जरासिन्ध जिधर जाता माराकाट करता निकल जाता, कुछ सैनिक तो उस से अपने प्राण बचाने के लिए भाग जाते। शिशुपाल श्री कृष्ण से भिड गया, उस ने कृष्ण को ललकार कर कहा--"यह गोकुल' ग्राम नहीं है, चरवाहो,, ग्वालो की सग्राम मे भला क्या चला सकती है। देखा कैसे मर रहे है, तुम्हारे योद्धा ने क्षत्रियो का संग्राम कभी नहीं देखा होगा, अब तो आँख खुली। खैर चाहते हो तो शस्त्र फेक दो ।'... , . , ____ श्री कृष्ण ने हस कर कहा-"शिशुपाल | पहले अपनी उस माता से तो पूछ लिया होता, जिसने मुझ से तेरे. प्राणो की क्षमा मांगी थी ? या मेरे हाथो मरने मे ही तुझे आनन्द आयेगा ?' . शिशुपाल गरज कर बोला-मैंने तो अपनी मा से पूछ लिया, पर तू तो यशोदा ग्वालिन से पूछ ले; उसकें ढोर कौन चुंगाएगा? मेरा एक भी वार नहीं सहा जायेगा। . . श्री कृष्ण ने कहा-“ऐसे योद्धा होते तो रुक्मणि के विवाह मे दुम दबा कर न भागते। 'चलेगी न-तेग और तलवार उन से . . यह वाजू-बहुत आजमाए हुए है।" .. . शिशुपाल को बहुत क्रोध आया, उस ने दांत पीस, कर श्री कृष्ण पर आक्रमण कर दिया। श्री कृष्ण वार काटते हुए बोले- 'तेरी धृष्टतायो को मैंने कितनी ही वार क्षमा कर दिया, पर अब तू सिर पर ही चढता चला आता है तो ले अपने किए का भोग ।" इतना कह कर उन्हो ने उस पर एक ऐसा वार किया कि शिशुपाल वही ढेर हो गया। शिशुपाल के मरते ही यादव सेना में नवोन आगा का सचार हुआ, सैनिको ने श्री कृष्ण की जय जयकार करनी आरम्भ करदी। जरासिन्ध अपने परम सहयोगी की मृत्यु- देख कर आग बबूला हो गया। उस ने आव देखा न ताव अपना रथ श्री कृष्ण की ओर हकवा दिया। उधर जरासिन्ध के पुत्रों ने बल राम को घेर रखा था , श्री कृष्ण ने उन पर वाण वर्षा की. उधर
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy