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जरासिन्ध वध
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विना नही गिरेगा। आप के सामने वह क्या है, शीघ्र काम तमाम कर के झगड़ा समाप्त कीजिए, क्यों व्यर्थ रक्त पात करा रहे हैं ?" ___श्री कृष्ण जी नारद जी की बात पर हस दिए, “आप को तमाशा ही देखना है, तो घबराइए नही । अव अधिक प्रतीक्षा नही करनी होगी। वह स्वय अपनी मृत्यु की ओर अग्रसर हो रहा है।" यवन कुमार और अक्रूर आदि मे घमासान युद्ध हो रहा था, मार काट करते यवन कुमार को 'सहारण ने जाकर आगे बढ़ने से रोक दिया। यवन कुमार कुछ देरी तक उसका सफल सामना करता रहा, सहारण ने ललकार कर कहा- "छोटे मोटे सैनिको को मार कर अपने को वीर समझ लिया होगा, पर किसी वीर से पाला नही पडा है, तो बगले झाक रहे हो।" - सहारण की बात सुन कर यवन कुमार को वडा क्रोध आया उसने कडक कर कहा-"अपने मुह मिया मिठू बनते पाप ही को देखा है। डीग, हाकना छोड़ कर हाथ दिखाओ। आटे दाल का भाव अभी ज्ञात हुया जाता है।"
'वढ बढ र बाते बनाना बहुत आता है, होता हुआता कुछ नहीं।" चिड कर सहारण बोला। यवन कुमार ने क्रुद्ध होकर उस का रथ चूर चूर कर दिया। इस पर सहारण भी क्रुद्ध हो गया. उस ने यवन कुमार पर खड़ग का एक ऐसा वार किया कि सिर धड मे अलग हो गया। सहारण की इस 'वीरता को देख कर यादव मेना में भारी हर्ष छा गया, मैनिक आनन्दित हो कर उछलने लगे।
युवराज का वध होते देख कर जरासिन्ध बहुत सुंझलाया, उस ने श्री कृष्ण की ओर बढना छोड़ कर सहारण का पीछा पकड़ा। कुछ देरी तक दोनो में युद्ध होता रहा, अन्त में जरामिन्ध के वारो को सहारण न काट पाया और उस को खडग से मारा गया।
फिर वह भूने मिह को भाति बलराम के पृषी पर टूट पड़ा और सभी को प्रान को प्रान में मार गिराया, हम से पांटयों की