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जैन महाभारत
चिन्ह वाली ध्वजा जिस पर लहराती है वह रथ जरत कुमार का है। पद्म रथ राजा के रथ के अश्व पदम समान हैं, और कमल जिस ध्वजा पर चमक रहा है, वह साहरण के रथ पर लहरा रही है। .............." 'मैं पूछता हू, कृष्ण का रथ कौन सा है ?" बीच ही मे जरासिन्ध कड़क कर वोला। ।
भत्री एक बार तो काप . उठा-बोला-"महाराज सेना के बीच मे श्वेत अश्वों वाला रथ जिस पर गरुड़ चित्रित ध्वजा लहरा रही है, श्री कृष्ण का है। और कृष्ण के पास दाहिनी ओर बलराम है" . बस बस पुराण मत वखानो'
मंत्री जरासिन्ध की बात सुन कर मौन रह गया।
जरासिन्ध ने सेना पर दृष्टि डाली और गरज कर बोलासब शत्रु दल पर टूट पडना।"
युद्ध प्रारम्भ हुआ। योद्धा आपस मे जूझने लगे, गज सवारों से गज सवार, अश्व सवारो से अश्व सवार, रथारोहियो से रथारोही, और पैदल सैनिको से पैदल सैनिक भिड गए। खड़गो की खन खन की ध्वनि से रण क्षेत्र भर गया। इतने ज़ोर का शोर हुआ कि आकाश पृथ्वी भी कांप उठे।
उसी समय नारद जी पधारे। जरासिन्ध के पास पहुंच कर बोले-'आप जैसे योद्धा के सामने वह ग्वाला क्या चीज है । तनिक आगेबढ़ कर उसी का सफाया कीजिए, सैनिको पर खड़ग उठाना आप को शोभा नहीं देता। आप श्री कृष्ण को मार कर जो यश प्राप्त करेंगे, वह आज तक किसी को नही प्राप्त हुआ होगा।
नारद जी की बात सुन कर जरासिन्ध उत्तेजित हो गया और नारद जी के सकेत पर कार्य करने के लिए आगे बढ़ने लगा।'
नारद जी श्री कृष्ण के पास भी पहुचे और बोले-महाराज! बूढा जरासिन्ध तो पक्के आम की भांति है, परन्तु आप की खड़ग