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हमारा एक-एक सैनिक आपके नाम पर अपने प्राण न्योछावर करसे को तैयार है, एक एक सैनिक आपकी शपथ को पूर्ण करने के लिये वैरियो गाजर मूली की भाति काट डालने को तैयार है ।"
जर सन्ध वध
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शिशुपाल ! हम सदा से ही तुम पर पूर्ण विश्वास करते हैं । श्री कृष्ण तुम्हारा भी वैरी है । तुम्हें जीवन चाहिये तो कृष्ण का वध करो। तुम्हे सुख चाहिए तो अपने पथ के काटे को क्रूरता से "समाप्त कर दो । आज तुम्हारे शौर्य की परीक्षा है ।" जरासिन्ध ने शिशुपाल को उत्तेजित करते हुए कहा- "महाराज ! आप की प्रसन्नता मुझे अपने जीवन से अधिक प्रिय है ।" शिशुपाल ने चापलूसी करते हुए कहा । हमे तुम से ऐसी ही प्रागा है ।"
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इधर मन के लड्डू फोडे जा रहे थे, उधर यादव गरुड व्यूह रच रहे थे। जब उधर व्यूह रचना देखी तो शिशुपाल ने भी चक्र व्यूह रचा । सारी सेना को युक्ति पूर्वक लगाया । जरासन्ध प्रथम दिन की भाति सैनिकों के बीच रहा। शिशुपाल उस के आगे रक्षको का अधिष्ठाता था ।
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जरासन्ध ने युद्ध आरम्भ करने से पूर्व अपने मंत्री को बुला कंर पूछा- 'मंत्री जी ! हमे यह बताओ कि आज विरोधी सेना में कौन कौन से सुभट हैं ?
मंत्री ने सामने सकेत द्वारा वता बता कर कहा - "महाराज ! अनाधृप्ट कुमार है । वही वह देखिये उन के रथ पर
वह सामने श्याम श्रश्व वाले रथ पर पाडवों को सेना का सेनापति है। गज चित्र युक्त पताका लहरा रही है । श्वेत अश्व और कपि स्वजा वाला रथ अर्जुन का है। नील कमल की बोभा वाले ग्रस्व जिन रथ मे जुते हैं, उस पर भीम सेन नवार हैं । और वह देखिये, सिह चिन्ह ध्वजा वाला, स्वर्ण समान चमकता र समुद्र विजय का है । वृपभ चिन्ह जिस ध्वजा मे हैं, वह अरिष्ट नगि जी वे रथ पर लहरा रहा है, उस मे शुक्ल वर्ग के अन्य जुने है । कवरे अश्वों वाले रथ में अक्रूर कुमार है. और कदी के चिन्ह बाली ध्वजा उस पर लहरा रही है | लाग श्रव वाला व उग्र मैन का, तीत वर्णी ऋवी का रथ महानेगि का. और हरिण
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