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________________ ५५६ ......... जैन महाभारत श्रुतायुध और काभोज का इस प्रकार अन्त देख कर श्रुतायु व अच्छतायु दो राजा अर्जुन पर टूट पड़े । वे दोनो दो ओर से अर्जुन पर बाण बरसाने लगे । दोनो ही बड़े चंचल और बलवान राजा थे, उनका मुकाबला करते २ अर्जुन बहुत थक गया बड़ा घोर सनाम छिड़ा था। दोनो ने मिलकर अर्जुन को घायल कर दिया। थक कर अर्जुन-ध्वज स्तम्भ के सहारे खड़ा हो गया । ... उस समय श्री कृष्ण वं.ले' "पार्थ ! रुक कैसे 'गए । इन दोनो राजामो की आत्मा इनके शरीर के बन्धन से मुक्त होने को लालायित है । और तुम्हारे बाणो की प्रतीक्षा कर रही हैं । देखो सूर्य का रथ वहुत आगे जा चुका है । तुम्हें जयद्रथ का वध करना है " अर्जुन को फिर उन्साह हुआ और उसने धनुष हाथ मैं सम्भाल लिया । देखते ही देखते उसने उन दोनों राजाओं को मार डाला । यह देख उनके दो पुत्र क्रुद्ध हो कर अर्जुन पर झपटे । पर जैसे इस्पात की दीवार से सिर टकराने पर सिर टकराने वाले को ही हानि पहुंचती है, उसी प्रकार उन दोनों के प्रहार करने से उनके प्राणों पर ही बन आई । अर्जुन ने दोनो को ही चिरनिद्रा मे सुला दिया।, - __गाण्डीव पर- दूसरी डोरी चढाकर, अर्जुन कौरव-सेना सागर फो चीरता हुआ आगे बढ़ा । उसके बाणो की मार से चारों ओर शव ही शव दिखाई देने लगे । कही कुचली हुई खोपड़ियां पडी थी, तो कही कटे हुए सिर रक्त के धारायें बह रही थी। टूटे हुए कवचो, चूर चूर हुए रथो और घोड़ो के शवो से धरती पट गई । कुछ ही देरि मे, वह स्थान, जो पहले छटे हुए कडियेले जवानो की पक्तियो से भरा था, मास पिण्डो, रक्त धाराओ, हड्डियो और रथो के अवशेषों से भर गया और तिल धरने को भी भूमि नही मिलती थी, अर्जुन का रथ शवो को कुचलता हुआ आगे जा रहा था , - उस समय वह भयानक अस्त्र प्रयोग कर रहा था। कभी उस के अस्त्रों से आग की लपटें निकलती थी तो कभी धुआं छूटता था। चिनगारियां सी छोड़ते उसके बाण क्षणभर में अनेक प्राणियो को मौत के घाट उतार देते थे। घोड़ों व मनुप्यो के चीत्कारो ने उस
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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