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जयद्रथ बंध
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को परास्त करके श्रुतायुध से जा भिडा। भयकर सग्राम छिड़ गया। श्रुतायुध के घोडे मारे गए इस पर क्रुद्ध होकर वह गदा हाथ मैं लेकर रथ से उतर आया और क्रोध वश गदा का प्रहार श्री कृष्ण परं कर दिया। पर निशस्त्र और युद्ध मैं न लड़ रहे श्री कृष्ण पर चलाई गदा उलटी श्रुतायुध को ही जा लगी, जिसकी चोट खाकर उसका शरीर तडपने लगा। कुछ ही क्षण पश्चात उसकी यई लीला समाप्त हो गई। यह उस वर दान का परिणाम था जो उसकी मां ने प्राप्त किया था।
इस वर दान की भी एक कथा है।
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कहते हैं श्रुतायुध की मां पर्णशम बडी पुण्यवती थी। उस ने अपनी तपस्या से वैसमण देवता के प्रसन्न होने पर वरदान मांगा था कि उसका पुत्र किसी शत्रु के हाथो न मारा जाये।
उत्तर मे देवता ने कृपा कर एक गदा उसे भंट की और कहां कि तेरा वेटा इस गदा को लेकर लड़ेगा तो कोई भी शत्रु उसका वध न कर सकेगा परन्तु शर्त यह है कि यह गदा उस पर न चलाई जाय, जो नि शस्त्र हो. अथवा जो युद्ध मैं शरीक न हो । यदि इन मे से किसी पर चलाई गई तो यह गदा उलटकर चलाने वाले का ही वध कर देगी। . तो वही थी वह गदा जो श्रुतायुध ने चलाई थी और क्रोधवश देवता की शर्त वह भूल गया, जिसके कारण श्री कृष्ण जो नि शस्त्र भी थे और लंड भी न रहे थे पर गदा का वार कर वंठने से उस गदा ने उसी का बध कर दिया। .
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श्रुतायुध के मरते ही काभोज राज सुदक्षिण ने अर्जुन पर प्रहार किया। परन्तु अर्जुन के वाणो के सामने उसकी एक न चली। अर्जुन ने उसके घोड़ों को मार डाला । धनुप तोड डाला और उस के कवच को चूर २ कर दिया । अन्त मैं एक ऐसा तीक्ष्ण बाण खीच कर मारा जो सीधे जाकर उसकी छाती पर लगा और वह हाथ फला कर भुमि पर गिर पड़ा। उसके मुह से एक चोत्कार निकला और छाती से रक्त का फव्वारा।।