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जयद्रथ वध
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स्थान पर वीत्स वातावरण बना दिया।
मार काट करता, रथो और हाथियो को मिटाता विनाश की ज्वाला बखेरता अर्जुन उस स्थान पर पहुच गया जहां जयद्रथ था।
. अर्जुन का रथ जयद्रथ की ओर जाते देख दुर्योधन बहुत चिन्तित हुआ · तुरन्त ही वह द्रोणाचार्य के पास पहुचा और बोला
"प्राचार्य ! अर्जुन तो हमारे व्यूह को तोडकर अन्दर प्रवेश कर चुका है और वह मार काट करतो उस स्थान पर पहुच गया है, जहा अनेक वीरो से सुरक्षित जयद्रथ खडा है । हमारी इस हार से वह वीर विचलित हो उठेगे जो जयद्रथ की रक्षा पर तैनात हैं । हम सब को आशा थी कि अर्जुन विना आचार्य जी से निबटे आगे नहीं जायेगा, न प्राचार्य हो उसे आगे जाने देगे। पर वह पाशा तो झूठी निकली। श्राप के देखते २ अर्जुन अपना रथ आगे बढा ले गया मालूम होता है कि आप पाण्डवों की विजय का रास्ता साफ करने को सदा हो प्रस्तुत रहते हैं। यह देख कर मेरा मन अधीर हो उठा है। आप ही बताईये कि मैंने आप का क्या बिगाड़ा है. जो आप मुझे पराजित करने पर तुले हैं । यदि पहले ही मुझे आपका इरादा ज्ञात हो जाता तो वेचारे जयद्रथ से यहाँ रुकने का आग्रह ही न करता। वहातो अपने देश जाना चाहता था । परन्तु मैंने ही उसे न जाने दिया। मेरी भूल से उस बेचारे के प्राणों पर प्रा बनी। अर्जुन ने यदि उस पर आक्रमण कर दिया तो फिर वह किसी प्रकार न बच पायेगा '
दुर्योधन के शब्दो से द्रोणाचार्य को बडी ठेस लगी । तो भी समय के अनुसार उन्होने क्रोध को पी लिया और बोले-"दुर्योधन! तुम ने इस समय जो शब्द कहे है, यद्यपि वे मेरे हृदय मैं बाणों की भांति लगे है तथापि में उनका बुरा नही मानता | क्योकि मे तुम्हे पुत्रवत मानता हूं, जैसा अश्वस्थामा, वैसे ही मेरे लिए तुम । इस लिए तुम्हारी बात को छोडकर में इस समय जो उचित समझता हूं वही बताता हू। देखो । पाण्डवो की सेना हमारे सैनिको को मारती काटती वही तीव्र गति से बढ़ी चली आ रही है। इस समय में यह उचित नहीं समझता कि यह मोरचा छोडकर अर्जुन का पीछा करने जाऊं। यदि मे यहाँ से हट गया तो अनर्थ हो जायेगा । देखो ! इस समय अर्जुन तो जयद्रथ की खोज मे गया है और युधिष्टिर इधर श्रा