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जयद्रथ बध
गज सेना उसके वाणो का ताव न ला सकी और कुछ ही देरि में, तितर बितर हो गई। - दुर्मर्षण बार-बार ललकारता रहा । पर सेना में उत्साह का सचार न हुआ । बल्कि जो भी बीर अर्जुन के सामने
आया, वही मृत्यु को प्राप्त हुया ।, तीन अंधड़ के चलने पर जैसे, मेघ खण्ड बिखर जाते हैं इसी प्रकार अर्जुन के बाणों से दुर्मर्षण की सेना, विखर-गई यह देख दु शासन को बड़ा झोष पाया और वह अपनी सेना सहित अर्जुन के सामने प्रा डटा - बडा ही रोमांच- कारों और वीभत्स दृश्य उपस्थित हो गया । अर्जुन के बाणो की - मार से सैनिको के शरीर निष्प्राण होने लगे। चागे ओर शवों के
डर लग गए। रथ टूट गए और सिर, धड़-तथा हाथ पैर इधर-उधर बिखर गए। उस वीभत्स दृश्य को देखकर दुःशासन की बची खुची सना का साहस टूट गया और वह मैदान छोड़कर भाग निकली।
शासन ने बहुतेरा,जोर मारा, पर जैसे सिंह के सामन भेडो की एक नहीं चलती, इसी प्रकार दुर्मर्षण तिलमिलाने के उपरान्त कुछ न कर पाया वह भागा और जाकर द्रोणाचार्य के पास भय पखल होकर पुकार की-' आचार्य ! अर्जुन की गति को रोकिए वह तो साक्षात काल रूप धारण करके तबाही मचाता हुया बढा चला आ रहा है।"
द्राण वोले--:"दुर्मर्षण ! उसकी गति को रोक पाना बच्चो का खेल नही है।" .
इतने ही मे अर्जुन का रथ भो द्रोण के पास पहच गया। जाते हा उसने तीन बाण उनके चरणो मे फेके और वीरोचित प्रणाम
उपरान्त उसने कहा - "गुरुदेव ! अपने प्रिय पुत्र को गवाकर भारदुःख से व्यथित होकर. अपने पुत्र की हत्या के लिए जिम्मेदार जयद्रथ की खोज मे मैं आया ह। मुझे अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करनी है। आज आप कृपया मुझे अनुगहीत करें।"
अजुन के नम्र निवेदन को सुनकर द्रोण वोले-"पार्थ! आज तो तुम मुझ से टक्कर लिए बिना आगे न, जा सकोगे।" .
__ "क्या पापं मेरी प्रतिज्ञा पूर्ति के पथ पर दीवार बनकर. खड़े रहना चाहते हैं ?"-अर्जुन ने प्रश्न किया। . . . "म तुम्हारे शत्रु-दल का सेनापति जी है।" द्रोण बोले । - मजुन ने द्रोण के शब्दो का उत्तर अपने तोण वाणों से