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________________ जंन महाभारत सेना के बीच में शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ प्राचार्य द्रोण ने एक भारी सेना को शकट चक्र-व्यूह मे रचा शंकट व्यूह के अन्दर कुछ दूर आगे पद्म-व्यूह बनाया । उससे आगे एक सूत्री-मुख-व्यूह रचा । उस व्यूह मे जयद्रथ सुरक्षित था। शकट व्यूह के द्वार पर स्वय द्रोणाचार्य खड़े हुए. : उस दिन उन्होने सफेद वस्त्र धारण किए हुए थे, उनका कवच भी सफेद रग का था। उनके रथ के घोडो का रंग भी सफेद ही था । वे अपने अपूर्व लेज के साथ प्रकाशवान ह रहे थे। व्यूह की व्यवस्था तथा मजबूती देखकर दुर्योधन को धीरज बधा। धतराष्ट्र के पुत्र दुमर्पण ने कौरव सेना के आगे लाकर अपनी सेना खडी कर दी. उस.सेना में एक हजार रथ, - एक. सौ.हाथी, तीन हजार घोडे, दस हजार पैदल और डेढ हजार धनुर्धारी-वीर सुव्यवस्थित रूप से खडे थे। अपनी इम सेना के आगे अपना रथ खडा करके दुर्मर्षण ने अपना शख वजाया और पाण्डवो को युद्ध के लिए ललकारा . “कहा है वह अर्जुन, जिसे अपने बल पर बडा. अभिमान है, जिसके बारे मे पाण्डवो ने उडा रक्खा है कि उसे युद्ध मे परास्त ही नहीं किया जा सकता। कहा है वह ?. आये तो हमारे सामने । मैं अभी.ससार को दिखा दगा कि अभिमानो का सिर नीचा होता है। वह हमारी सेना से टकराकर इसी प्रकार चूर चूर हो जायेगा जिस प्रकार मिट्टी का घडा पहाड़ से टकराकर टुकड़े टुकड़े हो जाता है।" अर्जुन ने चुनौती सुनी तो पाण्डवो की व्यवस्थित सेना से । निकलकर दुर्मर्षण की सेना के सामने आ खड़ा हुआ और अपना शंख बजाया, जिसका अर्थ था कि उसे चुनौती स्वीकार है। उस ने गरज कर कहा-"दुर्मर्षण ! घबराते क्यों हो, तुम्हे अभी ही अपनी शक्ति का पता चल जायेगा, ठीक ही कहा है कि जब चींटी. की मौत धाती है तो उसके पंख निकल जाते हैं।" . . ., कौरव सेना में बार-बार शख बजने लगे। तब अर्जुन ने श्री कृष्ण को कहा--"केशव-!- अबा रथ, दुर्मषण की सेना की ओर चलाईये। उधर जो गज सेना है. उसको तोडते हुए अन्दर घुसेंगे।" '। जाते ही अर्जुन ने दुर्मर्षण की सेना पर भयंकर प्रहार किया। शाता है तो उसके प्रम बार-बार शय दुर्मर्षण
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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