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________________ - जयद्रथ वध mmmmm..५४९ होने पर हमारा मुख्य शत्रु अर्जुन स्वय ही जीवित जल मरेगा । इस लिए आप को तो प्रसन्न होना चाहिए कि क्रोध मे पाकर हमारा शत्रु स्वय ही अपने नाश का जाल रच गया। "fकन्तु यदि अर्जुन ने मुझे खोज निकाला तो?" ___“मैं कहता हू हम तुम्हे ऐसे स्थान पर रक्खेंगे कि हम सब मारे गए तभी अर्जुन आप के पास तक पहुच सकता है, जो कि असम्भव है।" "अर्जुन बड़ा वीर है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नही !" में समझता हूं कि भय के मारे आप पर अर्जुन को भूत सवार हो गया है।" जयद्रथ स्वयं भी एक महाबली था पहले तो भय के मारे वह अपने मनोभावो को छुपा न सका, पर जब उसे दुर्योधन का सहारा मिला और कुछ धेर्य बघा तो वह आत्म सम्मान और व्याभिमान की रक्षा के लिए सचेत होगया और दुर्योधन की अन्तिम बात से वह स्वयं ही प्रात्म ग्लानि के मारे कुछ कह सकने योग्य न रहा। हा उसने इतना अवश्य कहा--"दुर्योधन ! कल यदि थोडी सी भी भूल हो गई, तो आप अपने एक परम सहयोगी से हाथ धो बैठेगे।" ____ "नही, ऐसा कदापि नही होगा " दढ़ता से दुयौंधन बोला। जयद्रथ सन्तुष्ट होकर वहा से चला गया तो दुर्योधन ने एक भयकर अट्टहास किया और फिर स्वय ही वोला- "अवश्य ही मेरा भाग्य जाग रहा है। आज भयकर शत्रु, अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का पत्ता कटा और कल अर्जुन भी समाप्त हो जायेगा। फिर तो विजय का श्रेय मुझे मिला ही रक्खा है।" उस के पापी मन ने शंकित होकर पूछा- "और यदि अर्जुन जयद्रथ तक पहुच गया तथा उसका वध कर डालने मे ही सफल हो गया तो ? .......स्मरण है कि उसके सारथि हैं श्री कृष्ण और सहयोगी हैं भोमसेन,, धृष्टद्युम्न प्रादि." । . वह बोला--"तो भी मेरा ही लाभ है. जोत फिर भी मेरी ही है क्योकि जयद्रथ के पिता की भविष्य वाणी के अनुसार जो जयद्रथ का सिर काट कर भूमि पर गिरा देगा उसी के सिर के उसी समय सौ टुकड़े हो जायेंगे । जयद्य का पिता वहा ही पुण्यवान
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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