________________
जैन महाभारत
तडप रहा था, मानो उस के हृदय मे विष से वुझा तीर चुभ गया हो ।
___ 'दुर्योधन ! सुना आप ने ? अर्जुन ने मुझे कल सूर्यास्त तक मारने की प्रतिज्ञा की है।"- भय विह्वल जयद्रथ ने दुर्योधन से जाकर कहा।
दुर्योधन ने उसका भय विह्वल चेहरा देखा तो स्वय व्याकुल हो गया-"हां, दूतो ने ऐसा ही समाचार दिया है।" उस ने कहा।
"तो फिर अब क्या होगा ?" .. -- “जो होगा देखा जाये गा। चिन्ता क्यों करते हो ?"
"नही दुर्योधन | अर्जुन अपनी बात का धनी है, वह मुझे मारे विना न छोड़ेगा। देखो तो अभिमन्यु को मारा किसी ने और फल भोगे कोई हैं न यह अन्याय। मुझे तो अपने देश लौट जाने की आज्ञा दे दीजिए । वस मैं अब और यहा नही ठहर सकता।"कापता हुआ जयद्रथ बोला।
. . "क्या कह रहे हो ? युद्ध छोड कर चले जाना चाहते हो ?" विस्मित होकर दुर्योधन ने प्रश्न किया।
.. "हां, मुझे नहीं चाहिए यह युद्ध पाप के साथियो ने वास्तव मे अभिमन्यु के साथ अन्याय किया, और अब उस अन्याय का बदला मुझ से लिया जायेगा । मैं दूसरे को आई मे क्यो मरू ? मुझे तो बस आज्ञा दीजिए ताकि मैं अभो ही अपने देश लौट जाऊ ."-जयद्रथ ने अपनी मानसिक दशा का परिचय देते हुए कहा।
दुर्योधन समझ गया कि जयद्रथ बुरी तरह घबरा गया है, उस ने उसे धीरज वधाते हुए कहा- 'आप भय न करें, मैं विश्वास दिलाता हू कि अर्जुन अापका वाल भी बांका नही कर सकता । प्राप की रक्षा के लिए मैं कर्ण चित्रसेन, विविंशति, भूरिश्रवा, शल्य, वृषसेन पुरुमित्र, जय, कांभोज, मुदक्षिण, नत्यव्रत, विकर्ण, दुर्मुख दुःशासन, सुबाहु, कालिंगव, अवन्तिदेश के दोनो राजाप्रो. प्राचार्य द्रोण, अश्वस्थामा, शकुनि श्रादि, समस्त महारथियों को लगा दूगा। हम प्राण देकर भी आपकी रक्षा करेंगे । फिर अर्जुन की क्या . मजाल है आप के पास भी फटक सके। प्रसन्नता की बात तो यह है कि कल को हम प्राप का पता भी न चलने देंगे। और सूर्यास्त