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________________ * उच्चासवां परिच्छेद 8589998898556609 जयद्रथ वध 9900900७७०००ह जयद्रथ अपने शिविर में विश्राम कर रहा था, तभी एक दूत ते श्राकर प्रणाम किया। "क्या बात है ?" " राजन् । अभी अभी हमारे जासूसों ने सूचना दी है कि अर्जुन ने कल सूर्यास्त से पहले पहले आप का वध करने को प्रतिज्ञा की है। वह या तो सूर्यात से पूर्व ही आप को मार डालेगा अन्यथा स्वयं जीवित ही चिता में जल मरेगा ।" او जयद्रथ को जैसे- बिजली का नगा तार छू गया हो । व्याकुलता से उठ खड़ा हुआ । उसकी आखे फटी सो पूछा - "क्या कहा ? अर्जुन ने प्रतिज्ञा की है "जी हाँ ।" י 31 • 感 1 93 वह खडा न रह सका, श्रासन पर गिर सा पडा । "अव क्या " होगा ? " - यह ये वे शब्द जो उसके मुह से निकले । उसके are वह चिन्ता मग्न हो गया। न जाने क्या सोचता रहा। एक दम रह गई । कुछ देर बाद वह कहता सुना गया - "लेकिन मैंने तो अर्जुन के पुत्र को नहीं मारा, मैंने तो एक भी वाण उस पर नही चलाया ।" मैं तो अभिमन्यु का हत्यारा नहीं। फिर अर्जुन मुझ पर क्यो कुपित हुआ ?" कुछ देर तक फिर उस के मुंह पर मोने छा गया। वह T
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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