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________________ * अठतालीसवां परिच्छेद * अर्जुन की प्रतिज्ञा xxxxxx xx: पश्चिमी क्षितिज पर सूर्य रक्त के धांसू बहाता हुत्रा शोक से डूब रहा था, उधर कुरुक्षेत्र मे सूर्य मुख अभिमन्यु अन्तिम स्वासे ले रहा था कौरव वीर बिल्कुल वैसे ही आनन्द मना रहे थे जसे जगली असभ्य लोग किसी मनुष्य की अपने देवता को के लिए बलि देकर आनन्द मनाते, नाचते गाते हैं । ध्वनियां हो रही थी; बार बार जय जयकार की गगन गूज जाती । युधिष्ठिर का मन सशक हो उठा। उनका प्रसन्न करने बार बार शस 1 काप उठा । 7 I MONTS भेदी श्रावाज रोम रोम - तभी किसी ने समाचार दिया - "सुभद्रा पुत्र वीर अभिमन्यु मारा गया। कौरव महारथियों ने उस वीर बालक को चारो ओर से घेर कर हत्या कर डाली । " युधिष्ठिर के हृदय पर भयंकर आघात हुआ । वे अपने को सम्भाल न सके । उनकी पलकें भीग गईं । कण्ठ अवरुद्ध हो गया। कुछ कह नही पाये । भीम, नकुल और सहदेव को भी बड़ा दुख हुआ परन्तु इस से अधिक दुख उन्हें महाराज युधिष्ठिर की दशा देख कर हुआ । सूर्य अस्त हो गया। युद्ध बन्द कर दिया गया । X x X x X X X अपने शिविर में शोकातुर यधिष्ठर रह रह कर अभिमन्यु की वीरता और अपनी भूल पर कुछ न कुछ कह बैठते। सभी पाण्डव
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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