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जैन महाभारत
जयकार मना रहे थे, उस समय ही युधिष्ठिर व्यूह से बाहर ख अभिमन्यु की पताका और रथ कही न देख कर मन ही मन सशय हो उठे और अपने धडकते हृदय से बार बार पूछने लगे-यह जर जयकार कैसी ? कहीं सुभद्रा पुत्र......"
__ आगे उनसे कुछ न कहा जाता . एक महारथी ने द्रोण को उल्लास पूर्वक कहा-"प्राचार्य !
आज वडी कठिनाई से उस दुष्ट का अन्त हुआ। कैसा शुभ दिन है अाज फि......"
“आज हम सव, परास्त हो गए। हम सव पथ विमुख हे गए। आज शोक का दिन है।" द्रोण बोले। .. . सुनकर दुर्योधन को पाखों मे खून उत्तर प्राया।