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श्रभिमन्यु का बंध
भी कभी कभी दुःशासन के पुत्र का साथ दे देते । अभिमन्यु बुरी
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जब
"रह घायल हो चुका था, उसका सारा शरीर चूर-चूर हो रहा था एक बार जब दोनों गिरे तो अभिमन्यु के उठने मे कुछ देर हो गई। तब तो समस्त शासन का पुत्र तनिक पहले ही उठ खडा हुआ । कौरव चिल्ला उठे – “मारो, देर न करो।” ओर उसने अभिमन्यु पर गंदा का एक भीषण प्रहार किया। अभिमन्यु गदा की मार से उठे न सका। फिर क्या था, कितने ही प्रहार उस पर हुए । कौरव सैनिको ने उसे बेजान समझ कर छोडा, तो अभिमन्यु ने अपनी डूबती आवाज में कहा - "अरे पापियो एक व्यक्ति को चारो ओर से घेरकर मारना कहा का धर्म है ? जाओ अब भी मुझे विश्वास है कि मेरे पिता तुम दुष्टों के इस अन्याय का बदला लेगे। तुम अपने किए पर पछताओगे और तुम्हारी वह गति होगो कि तुम्हारी सन्तानो तक तुम पर थूकेगी विश्वास रक्खो अधर्म तथा अन्याय
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की कभी विजय नही होगी फिर उसने अपनी डूबती प्रावाज मे धीरे धीरे कहा- "मातेश्वरी ! तुम्हे अन्तिम प्रणाम । खेद कि मैं अन्तिम समय तुम्हारे दर्शन पिता जी ! श्राप जहाँ भी हो, मेरा अन्तिम प्रणाम आप विश्वास रक्खें कि आप के पुत्र ने आपके नाम को बट्टा नही लगाया । श्राप मेरी त्रुटियो को क्षमा कर दे और इन दुष्टो को इन के अपराध का अवश्य दण्ड दे ।
मामा जी ! आप कहा हैं, ग्रापका भानजा शत्रुओ के बीच अकेला प्राण दे रहा है जहा हो मेरा अन्तिम प्रणाम स्वीकार करें।" उसकी जवान बन्द होगई। श्रखे फिर गई और लटक गई।
इतना कहते कहते गरदन एक ओर
न कर सका । स्वीकार करें ।
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घेर कर कौरव जगली मनाने लगे । लेकिन आकाश के पक्षी
पुष्प पंखुडियां वरसाने लगे। यह देख कर श्राया । द्रोण का मुख लज्जा से लटक गया । जब कौरव वीर अभिमन्यु की मृत्यु पर रह रह कर दुर्योधन, दुःशासन के पुत्र और
और
सुभद्रा के पुत्र प्रभिमन्यु के शव को व्याघो की भाति नाचने कूदने और श्रानन्द जो सच्चे वीर थे उनकी श्रांखो मे ग्रासू आ गए। तक चीत्कार करने लगे और देवतागण उस वीर बालक के शव पर
दुर्योधन को बढ़ा क्रोध
श्रानन्द मना रहे थे द्रोणाचार्य की जय