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________________ ५३४ जैन महाभारत छोडो को मार डाला। वह रथ विहीन हो गया । धनुष भी उस के पास न रहा। पर उस वीर के मुख पर भय का कोई भाव प्रकट न हुया । वह साहस पूर्वक ढाल तलवार लेकर मैदान में प्रा डटा उस समय उस के मुख पर अदम्भ बीरता झलक रही थी, मानो क्षत्रियोचित शूरता का वह मूर्त रूप हो। ढील तलवार लेकर ही उस वीर ने रण कौशल का ऐमा अदभुत प्रदर्शन किया कि शत्रु विस्मय मे पड़ गए। अभिमन्यु विद्युत गति से तलवार घुमाता रहा और जो भी उस के सामने पड़ा उसी की अच्छी खासी खबर लेता रहा । तलवार का चक्कर इस जोर से उस न वाघा कि तलवार चलती हो दिखाई न देती थी ऐसा लगता था कि जैसे कोई तेज धार का चक्र उसके हाथो मे हो। पर तभी द्रोण ने उसकी तलवार काट डाली और कर्ण ने कई तीक्ष्ण बाण चला कर उसको ढाल काट डाली। उस समय वीर अभिमन्यु का साहस अभूत पूर्व था, जिसने देखा उससे प्रशंसा करते न बनी। ढाल तलनगर के समाप्त होने ही उसके पास कोई अस्त्र न रह गया था परन्तु उस की सूझ देखिए । दौड़ कर उसने तुरन्त ही टूटे रथ का पहिया हाथ मे उठा लिया और उसे ही चक्र की भाति घुमाने लगा। ऐसा करते हुए लगता था मानो श्री कृष्ण के भाजे के हाथ मे सुदर्शन चक्र ा गया हो। वल्कि मानो सुदर्शन चक्र लिए ही स्वय वासुदेव ही रण क्षेत्र मे पागए हों। द्रोण के मुह से भी हठात निकल गया-'धन्य वीर बालक! तुम अजेय हो।" रय के पहिए को ही अस्त्र के रूप से प्रयोग करके कितने ही कौरव सैनिको को मौत के घाट उतार दिया। कुपित होकर यह समझ कर अस्पहीन वीर वालक अव कर ही क्या सकता है, कौरव सैनिको ने उसे चारो ओर से घेर लिया। भालो, गदाओ, तलवारा श्रीर वाणो से उस पर आक्रमण करने लगे और कुछ ही देरि मे धार अभिमन्यु के हाथ का रथ का पहिया चूर-चूर हो गया। इसा वीच दु-गामन पुत्र गदा लेकर अभिमन्यु पर पा झपटा। परन्तु दूर पड़ी एक गदा अभिमन्यु के हाथ भी लग गई। दोनों मे घोर युद्ध छिड़ गया। दोनों वीर एक दूसरे पर भयकर गदा प्रहार करते रहे दोनों ही कई बार गिरे, पुनः उठे और भिड़ गए। दूसरे सैनिक
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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