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- ५३६ .............जैन महाभारत...
जैन.महाभारत
जयकार मना रहे थे, उस समय ही युधिष्ठिर व्यूह से बाहर खड़े अभिमन्यु की पताका और रथ कही न देख कर मन ही मन सशंक हो उठे और अपने धडकते हृदय से बार बार पूछने लगे-यह जय जयकार कैसी ? कही सुभद्रा पुत्र . .."
आगे उनसे कुछ न कहा जाता
एक महारथी ने द्रोण को उल्लास पूर्वक कहा-"प्राचार्य ! आज बड़ी कठिनाई से उस - दुष्ट का अन्त हुआ। कैसा शुभ दिन है आज फि......" . .
"अाज हम सब परास्त हो गए। हम सब पथ विमुख हो गए। आज शोक का दिन है।" द्रोणं बोले।
सुनकर दुर्योधन की आखों मे खून उत्तर पाया।