SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 535
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिमन्यु का वध .............. ५२९, · · कर्ण को जब अभिमन्यु ने खदेड दिया, तो कौरवो की पक्तिया जगह जगह 'से टूट गई। सैनिक अपने प्राण लेकर भागने 'लगे। यह दशा देखकर द्रोणाचार्य को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होने 'संनिको को ललकारा, उन्हें रोका और युद्ध के लिए उकसाया । पर जो भी अभिमन्यु के सामने आने का साहस करता वही मारा जाता। वह उस समय उस ज्वाला के समान था, जिसमें कोई भी संनिक रूपो लकड़ी जाने पर धू धू करके जलने लगती थो। .x , x .. x x .. अभिमन्यु तो उस और साक्षात यमराज का रूप धारण किए प्रलय का ताण्डव नृत्य कर रहा है। प्राग्रो हम दूसरी ओर लौट चलं । जैसा कि हम पहले कह आये हैं, पाण्डव-वोर अपनी सेना सहित अभिमन्यु के पीछे पोछे आ रहे थे, जब अभिनन्यु ने व्यूह ताड कर अपने लिए मार्ग लिया, और कौरव सैनिक उसकी गति को अवरुद्ध करने के लिए उससे यद्ध करने लगे, तो उधर पाण्डव वीरो ने भी व्यूह मे घसने की चेप्टा की , परन्तु उसी क्षण जयद्रथ अपने सनिको को लेकर वहां पहच गया और उसने पाण्डवों पर भीषण आक्रमण कर दिया। धतराष्ट्र के भांजे, सिंधु नरेश जयद्रथ के इस साहस पूर्ण कार्य और सूफ को देखकर उस मोरचे के कौरव सैनिको - को उत्साह की लहर दौड़ गई। दूसरी ओर के कौरव सैनिक शीघ्न - ही दोडकर वहाँ पहुच गए, जहा जयद्रथ पाण्डव-वीरो का रास्ता - रोके खडा था। शीघ्न ही व्यूह मे आई दरार भर गई। इतने सैनिक चहा नहुच गए, कि अभिमन्यु ने जिन पक्तियो को तोड़कर अपने • लिए मार्ग बनाया था, वे पूर्ण हो गई और पहले से भी अधिक सुदृढ हो गई। पाण्डव वीर जयद्रथ से टक्कर लेने लगे। व्यूह के द्वार पर युधिष्ठिर तथा भीमसेन जयद्रथ से भिड गए। भीषण सग्राम हो रहा था, कि युधिष्ठिर ने एक बार भाला फेंक कर जयद्रथ पर मारा, जिससे जयद्रथ का धनुप टूट गया। क्षण भर मे ही जयद्रथ ने दूसरा Ey " घनुप सम्भाल लिया। और युधिष्ठिर पर बाणो की वर्षा प्रारम्भ कर दी। . भीमसेन ने जयद्रथ के भीपण प्राकमण के उत्तर में बाण बरसाये और उसके रथ की ध्वजा तथा छतरी कट कर रण भूमि म गिर गई। जयद्रथ का धनुप भी टूट गया, फिर भी वह किचित
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy