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________________ ५२४ जैन महाभारत कौरव सेना के निकट पहुंचते ही, एक बारतो कौरव सैनिको के दिल 'दहल गए। सभी मन ही मन सोचने लगे--"वोरता मे अभिमन्यु अर्जुन से किसी प्रकार कम नही। आज के युद्ध में देखना ही चाहिए।" और अभिमन्यु का रथ घड़ घंडाता हुया ऐसे प्रा धमका जैसे छलांग लगा कर सिंह अपने शिकार के सिर पर प्रा धमकता है । एक मुहूर्त के लिए तो कौरव सेना की वह गति हो गई जैसे विजली टूटने पर भयभीत असहाय मनुष्य की हो जाती है। पान की आन में अभिमन्यु का रथ आया और बडे वेग से आक्रमण कर के उस ने अपने लिए मार्ग बना लिया। बडे यत्न से बनाया हुओं द्रोणाचार्य का व्यूह देखते ही देखते टूट गया ओर अभिमन्यु ने व्यूह में प्रवेश कर लिया। जैसे तूफान के सामने आने वाली चट्टाने भी ढहती चली जाती है। इसी प्रकारे अभिमण्यु के सामने जो भी कौरव वीर पाया वही यमलोक कूच करता गया। जैसे भाग में पड़ कर पतंगे भस्म हो जाते हैं उसी प्रकार अभिमन्यु की गति को रोकने की चेष्टा करने वाले कौरव वीर अभिमन्यु के शौर्य की ज्वाला में भस्म हो गए शवों और नर मुन्डों के ढेरो पर से उतरता हा अभिमन्यु का रथ आगे ही वढता गया। शिशु सिंह का प्रत्येक वाण यमदूत बन कर निकलता जिस पर पड़ता उसी के प्राण लेकर छोडता । जिधर से उसका रथ निकलता उधर ही सैनिकों के शव भूमि पर विछ जाते यहा तक कि पैर रखने को स्थान न मिलता। जिधर दृष्टि जाती उघर ही धनुष वाण, ढाल, तलवार, फरसे, गदा, अफुश. भाले, रास, चावुक, गल, नर मंड, कटे हुए मानव अंग, फटे कवच, रथो के टुकड़े आदि विखरे पड़े थे। कटे हुए हाथों, फटे सिरो, कूचली हुई खोपड़िया, हाथ पाव विहीन घड़ो आदि इस प्रकार विछ गए कि भूमि दिखाई ही नहीं देती थी। कौरव सैनिक जान हथेली पर रख कर पाते, परन्तु क्षण भर मैं वे यमलोक सिधार जाते। यह दशा देख कर कारव सैनिक भय विह्वल होकर इधर उधर भागने की चेष्टा करने लगे। द्रोण के व्यवस्थित व्यूह की यह दुर्दशा देख कर दुयोधन विक्षुब्ध हो उठा। उस ने अपने सनिको को फटकारना प्रारम्भ कर दिया और जब उसकी फटकारो से भी सैनिकों को उत्साह न पाया
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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