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अभिमन्यु का वध
..........२३.. ३ अभिमन्यु सारथि की बात सुन कर हस पडा और बोला- "मुमित्र ! तुम जानते हो कि मैं वासुदेव श्री कृष्ण का भानजा और
सर्व विख्यात धनुर्धारी वीर अर्जुन का पुत्र हूं। मेरी रगो मे वह रक्त दोड रहा है कि भय और अशंका तो मेरे पास भी नही फटक सकते। तुम जिन्हे महावली कह रहे हो उस की सारी सेना को मिला कर भी मेरा वल उन से अधिक है । और फिर कुल नायक को चिन्तित पडा देख कर मैं चुप रह जाऊं यह मुझ से नही होगा ! तुम चिन्ता
मत करो। बस तेज चलायो । मुझे शीघ्र ही उस ओर पहुचादो " - अभिमन्यु की आज्ञा मान कर सारथि ने उसी अोर रथ वढा
दिया। पीछे पीछे अन्य पान्डव वीरो के रथ और उन के सैनिक थे।
दोड रहा है
तो कह रहे हा
फिर कुल ना
तुम चिन्ता
. आकाश मे मूर्य चमक रहा था, उसकी किरण अग्निनाणों की भाति पृथ्वी पर बरस रही थी, इधर अभिमन्यु का रथ बडे वेग से कोरव सेना को ओर बढ़ रहा था। तीन तीन वर्ष की आयु के बडे ही सुन्दर, चचल और वेगवान घोडे अभिमन्यु के सुनहरे रथ में जुते थे। अभिमन्यु की भाति उन मे भी उत्साह था। मानो वे भो शीघ्र ही कौरव सेना मैं पहंच कर उन के चक्र व्यूह को तोड डालने के लिए उत्सुक हो।
अभिमन्यू का रथ ज्यो ही कौरव सेना के व्यूह के निकट पहुचा कौरव सेना मे हल चल मच गई।"--वह देखो अर्जुन पुत्र अभिमन्यु पा रहा है।" बहत से सैनिक अभिमन्यु के रथ की पोर सकेत कर के एक साथ चीख उठे।
कुछ दूसरे सैनिक चिल्लाए . "और उस के पीछे पाण्डव-वीर अपनी सेना सहित बड़ी तेजी से बढे चले आ रहे हैं।"
"अर्जुन न सही अभिमन्यु ही आज प्रलय मचा देगा।" किसी ने अाशका प्रकट करते हुए कहा ।
'अजी! द्रोणाचार्य ने आज वह व्यूह रचा है कि आभमन्यु जैसे कल के छोकरे को तो प्रवेश मार्ग का पता भी नहीं चलेगा।" S एक सैनिक बोला।
"वह भी सिंहनी का एक केहरी ही है देखो तो किस शान से चला पा रहा है ।" दूसरे ने कहा ।
कणिकार वृक्ष की ध्वजा लहराते हुए अभिमन्यु के रथ के