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* संतालीसा परिच्छेद *
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अभिमन्यु का वध 88888888888888 युधिष्ठिर चाहते थे कि अभिनन्यु को किसी सकट में न डाला जाय अतः उन्होने धृष्टद्युम्न, विराट, द्रपद, भीमसेन ' सात्यकि, -मकुल और सहदेव आदि सभी महारथियों को साथ लेकर एक विशाल सेना सहित अभिमन्यु का अनुकरण करना प्रारम्भ किया।
अभिमन्यु गर्व के साथ अपने रथ पर सवार होकर द्रोण की चक्र व्यूह में व्यवस्थित सेना की ओर बढ़ा। उसने अपने सारथि को उत्साहित करते हुए कहा- 'सुमित्र! वह देखो द्रोण के रथ की ध्वजा । बस उसी पोर रथ बढ़ाओ। जल्दी करो।"
सारथि ने अभिमन्यु की आज्ञा पाकर रथ को तीव्र गति से उसी ओर हांकना प्रारम्भ कर दिया। परन्तु रथ की गति से अभिमन्यु सन्तुष्ट न हुआ। उसने रथ को तेज़ो से हाकने के लिए पुनः सारथि को उकसाया। उत्साह में पाकर वह बार-बार कहने लगा -"सुमित्र चलायो, और तेज़ चलाओ।" ।
सारथि ने घोड़ो को तेजी से हांकते हुए नम्र भाल से कहा ~ "भैया ! चक्र व्यूह तोडना, वह भी द्रोणाचार्य जसे रण चातुर्य में पारंगत विद्या भास्कर द्वारा रचित, बड़ा ही जटिल कार्य है। तुम्हें महाराज युधिष्ठिर ने बड़ा ही भारी काम सौंप दिया है। द्रोणाचार्य अस्त्र विद्या के महान प्राचार्य हैं और महावली हैं। आप तो उनके सामने अवस्था में अभी विलकुल वालक समान ही हैं। इस लिए एक बार पुन. सोच लीजिए, ऐसा न हो कि ........'