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कर्ण का दान
निकट जाकर उसने कहा - " तो तुम लोग यमलोक सिधारने के लिए बेताब हो रहे हो ।"
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सुशर्मा गरज वडा - " तनिक दो दो हाथ करले तब तुम्हे पता चले कि कौन यमलोक सिधारता है ।"
अर्जुन ने गाण्डीव उठाया और बाण वर्षा आरम्भ कर दी, सप्तक भी टिड्डी दल की भाति अर्जुन पर टूट पड े । घोर संग्राम छिड़ गया ।
अर्जुन के दक्षिण की ओर चले जाने पर द्रोणाचार्य ने अपनी सेना की चक्रव्यूह मे रचना की। यह देख कर पाण्डव सेना का सेनापति धृष्टद्युम्न चिन्तित हो उठा। उसने जाकर युधिष्ठिर से कहा—“राजन् नाज बडी विकट समस्या आ गई । द्रोण ने आज चक्रव्यूह रचा है । उसे कौन तोड सकेगा ?"
इतने ही मे द्रोण ने धावा बोल दिया । युधिष्ठिर की ओर से भीम, सात्यकि, चेकितान, धृष्टद्युम्न, कृतिभोज, उतमौजा, विराट राज, कैकेय वीर आदि कितने हो महारथी थे । परन्तु चक्र व्यूह मे व्यवस्थित द्रोण की सेना के घावे को उन सभी सर्व विख्यात महारथियो मे से कोई न रोक पाया। सभी जी तोड प्रयत्न कर रहे थे. भीमसेन कभी घनुष उठाता, तो कभी गदा लेकर चलता । धृष्टद्युम्न कभी किसी ओर से आक्रमण करता, तो कभी किसी ओर से व्यूह तोडने का प्रयत्न करता, पर जहा भी जाता, अपने को घिरा पाता। यह देशा देखकर युधिष्ठिर चिन्तित हो उठे । सेनिको को मोर्चे पर लगाकर उन्होने भीमसेन, नकुल और सहदेव को अपने पास बुलाया । बोले - "ग्राज लगता है हमारी पराजय का दिन या गया । द्रोणाचार्य ने ऐसे चक्र व्यूह की रचना की है कि हम मे से सिवाय अर्जुन के और कोई इसे तोडने की विधि नही जानता । जिधर से हमारे महारथी, इस - व्यूह को तोडने की चेष्टा करते है उसी ओर से अपने को घिरा पाते हैं। हमारे सभी किये कराये पर पानी फिरना चाहता है । श्रव क्या किया जाये ?"
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भीमसेन ने कहा - "महाराज ! मैं अपने सभी अस्त्र प्रयोग कार चुका परन्तु इस व्यूह का तो रास्ता ही दिखाई नही देता । ऐसा शुक्र है कि जिधर से जाता हूं उसी ओर से टिड्डो दल की भांति संनिक पीर महारथी टूट पड़ते हैं । मैं स्वयं निराश हो चुका हूँ ।"