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________________ ५०५ बाहरवां दिन लिए अर्जुन ने उसे निकल जाने दिया। भगदत्त के मारे जाने और शकुनि के भाग जाने के उपरान्त Tो पाण्डव सेना मे असीम उत्साह आ गया और वह द्रोणाचार्य की सेना पर टूट पडी मार काट होने लगी। असख्य वीर खेत रहे। कितने ही योद्धा घायल हो गए । रक्त की धाराए बह निकलीं। रण क्षेत्र की भूमि गारे की भाति हो गई। शवों से क्षेत्र पट गया। महारथियो के कवच टूट गए । घोडो की जिव्हा बाहर निकल आई। कौरव सेना का साहस टूट गया, त्राहि त्राहि मच गई। उधर आकाश में सूर्य प्रात्मत्सर्ग की तैयारी कर रहा था। अपना ताप सूर्य ने समेट लिया था और रात्रि के आगमन के लक्षण साफ होते जा रहे थे। इधर कौरवो की सेना की दुर्दशा देखकर पाण्डवो को सेना को और भी प्रोत्साहन मिला। उसने कौरवो के हाथों घोडो को भी धाराशाही - करना प्रारम्भ कर दिया। द्रोणाचाय से भो उस समय कुछ करते न बना। इस दशा को देखकर कुछ कौरव महारथी तो मानसिक सन्तुलन तक खो बैठे।। ___ ज्योहो सूर्य अस्त हा द्रोणाचार्य ने विनाश के उस अध्याय को स्थगित कर देने मे ही कल्याण समझा। युद्ध के समाप्त करने लिए शव बजा दिए गए। पाण्डव विजय नाद करते हुए अपने शिवरी की ओर चले और कौरव मह लटकाए हए वापिस हए । वारहवे दिन का युद्ध इस प्रकार समाप्त हो गया ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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