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जैन महाभारत
गई थी, उसे पट्टी ऊपर रोके रहती थी। वह खाल ऐसी थी कि उस के लटक जाने पर भगदत्त की अांखें पूरी तरह न खलती थी। पट्टी का कटना हुआ है कि खाल पुन. आखो के आगे ना गई तब वेचारा भगदत्त अर्द्ध चक्षु हीन होगया ओर उस की आंखो के आगे अवकार छा गया, तभी गाण्डीव से छूटा एक वाण और आया जो उसकी छाती को चीरता हुआ निकल गया। सोने की माला पहने हुए भगदत्त हाथी पर से नीचे लुढ़क गया। और अभी कुछ देरि पहले जो शूरवीर पाण्डव सेना के लिए काल रूप घर कर आया था, जिस के हाथी ने कोहराम मचा दिया था, वही भगदत्त मिट्टी में लुढकने लगा। और उस के रक्त से दो हाथ मिट्टी लाल कीचड की नाई हो गई।
भगदत्त के मरते ही पाण्डव सेना में उत्साह छा गया, विजय के शंख वजने लगे। अर्जुन की जय जयकार होने लगी। कौरवं की सेना मे शोक छा गया। परन्तु शकुनि के भाई वृपक और अचल तव भी विचलित न हुए और वे जम कर लडते रहे। उन दोनों में से एक ने आगे से और दूसरे ने पीछे से अर्जुन पर वाण बरसाने प्रारम्भ कर दिये। अर्जुन को कुछ देरि तक तो उन सिंह-शिशुओं ने खूब तग किया। पर अन्त में अर्जुन से न रहा गया, उस ने भयकर बाण वर्षा की और उन दोनों को मार गिराया।
अपने दोनो सुन्दर तथा चवल भाईयों के मरने पर शकुनि के क्षोभ और क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने अर्जुन के विरुद्ध माया युद्ध आरम्भ कर दिया और वे सभी अस्त्र तथा उपाय प्रयोग करने लगा जिनमे उसे कुशलता प्राप्त थी। परन्तु अर्जुन भी किसी बात में कम न था, उसने शकुनि के प्रत्येक अस्त्र को अपने अस्त्र से काट डाला। एक बार शकुनि ने ऐसी शक्ति प्रयोग की जिसस अर्जुन की ओर धुएं का बादल सा उमड पडा। अर्जुन ने उसके उत्तर मे ऐसा अस्त्र प्रयोग किया, जिससे वह धुएं का वादल घूमकर शकुनि की ओर बढने लगा और फिर वेचारे शकुनि को उसस पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया। अन्त मे अर्जुन के बाणों से शकुनि बुरी तरह घायल हो गया। निकट था कि अर्जुन के वाण उसक प्राण लेते कि शकुनि बच कर रण क्षेत्र से भाग निकला। रण से भागते सैनिक पर वीर पुरुष अस्त्र प्रयोग नहीं किया करते । इस