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________________ बाहरवा' दिन की छाती पर लगते ही वह शक्ति बन-माला सी बन कर श्री कृष्ण की शोभा बढाने लगो। - - - - - . . . । अर्जुन के अभिमान को इस घटना से । बडी ठेस लगी। वह श्री कृष्ण से बोला-जनार्दन! शत्रु द्वारा चलाया हुया 'अस्त्र अपनी छाती पर लेना क्या आप के लिए उचित था जब आप ने प्रतिज्ञा को है कि महाभारत मे आप रथ हाँकने के अतिरिक्त और कुछ न करेंगे तो फिर जब धनुष लिए तो मैं खंडा हूँ, और वार आप सह रहे हैं, यह कहां का न्याय है?". , श्री कृष्ण हस कर बोले--"मैं युद्ध मे तो भाग नहीं ले रहा, पर यदि शत्रु का वार मेरे ऊपर होता है तो फिर क्या इस लिए कि में युद्ध नहीं कर रहा, उस से किसी प्रकार बंच सकता हूं। मैं सारथि हू इस लिए मेरा धर्म है कि रथ इस प्रकार हाक कि रथ पर सवार योद्धा को कम से कम हानि हो । -- ---- - . अर्जुन कुछ न बोला, बल्कि भगदत्त के उस वार का उत्तर दृढता से देने के लिए एक तीक्ष्ण बाण गाण्डीवं की डोरी को कॉर्न तक खींच कर इस प्रकार मारा कि सुप्रतीक हाथी के मस्तक को काटता हुश्रा वह वाणं इस प्रकार निकले गया जैसे सांप अपने बिल म जाता है बाण का लगना था कि हाथी के मुंह से चिंघाडे के रूप में एक भयकर चीत्कार निकला। और वह वही पृथ्वी पर बैठ "या। भगदत्त ने अपने हाथी को वहत उकसाया, वडी डोटा डपटा, परिवार उसे सहलाया. पर हाथी जब बैठ गया तो वैठ गया, वह उठा। पीड़ा के मारे उस का बुरा हाल था, वह रह रह कर चिघाड रहा था वेहाल होकर और पीडा से परेशान होकर वह अपने दांतों से धरती कुरेदने लगा और थोड़ी ही देर बाद उस पिपल वाण की मार से ही पीड़ित होकर पैर पटक पटक कर उसने प्राण छोड दिये। . यह देख कर अर्जुन को मानसिक दुख हुया, क्योंकि वह हाथा को मारना नही चाहता था, वह यदि मारना भी चाहता था, " भगदत्त को, पर भगदत्त बच गया था, उसे देख कर अर्जुन कर व्याकुल हो उठा। उस ने समझ बूझ कर एक ऐसा बाण मारा जिससे भगदत्त के सिर पर वधी रेशमी पंट्री कट गई। वह पट्टी इस लिए बंधी थी कि भौगों पर की खाल जो बुढ़ापे के कारण लटक
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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