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बाहरवां दिन
है । युद्ध के खूंख्वार हाथियों को चलाने में भगवत्त जैमा समार मे और कोई नही है । मुझे डर है कही भगदत्त हमारी सेना को तितरवितर करके हमें हरा न दे ।"
कृष्ण बोले- “भीमसेन तो वहाँ है ही । और तुम ठहरे 'संशप्तको के मुकाबले पर, तुम कर ही क्या सकते हो ।"
"मधुसूदन । मैं काफी सशप्तको को मौत के घाट उतार चुका । काफी सेना को परास्त कर चुका अब इस मोर्चे को जोडकर पहले मुझें उनकी खबर लेनी चाहिए। देखिये वहा चलना बडा आवश्यक है जहां द्रोणाचार्य युधिष्ठिर से लड रहे हैं ।" ---अर्जुन वोला ।
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श्री कृष्ण ने अर्जुन की बात मान ली और रथ उसी ओर घुमा दिया जिधर भीमसेन और भगदत्त के हाथी का युद्ध हो रहा था । पर सुशर्मराज और उसके भाई सशत्तक उसके रथ का पीछा करने लगे और चिलाने लगे-''ठहरो ठहरो जाते कहा हो ।”
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यह देख अर्जुन बड़ी दुविधा मे पड़ा क्षण भर के लिए किकर्त्तव्यविमूढ़-सा होकर सोचने लगा कि "क्या करू ? सुगर्मा इधर ललकार रहा है। उधर उत्तरी मोर्चे पर सेना व्यूह टूट रहा है, सकट आ गया है, उधर जाऊ तो सुशर्मा समझेगा कि अर्जुन डर 'कर भाग गया है । यदि यही डटा रहूं और उधर तुरन्त मदद न पहुची तो किया कराया सब चौपट हो जायेगा और पराजय हो "जायेगी ।"
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अर्जुन भी इसी सोच विचार मे पड़ा था कि इतने मे सुशर्मा एक शक्ति प्रस्त्र अर्जुन पर छोडा और एक तोमर श्री कृष्ण पर । सचेत होकर तुरन्त हीँ अर्जुन ने तीन बाण मारकर सुशर्मा को ईंट का जवाब पत्थर से दे दिया और श्री कृष्ण को तेजी से भगदत्त की प्रोर रथ दौड़ा ले चलने को कहा ।
अर्जुन के पहुंचते ही पाण्डवो की सेना मे नवीन उत्साह का सचार हुआ । सव जहां के तहां रुक गए और आक्रमण करने के लिए तैयार हो गए। कौरव सेना पर भीषण ग्राक्रमण करके प्रर्जुन भगदत्त के हाथी की ओर वढा । सुप्रतीक बुरी तरह अर्जुन के रथ पर झपटा पर श्री कृष्ण की कुशलता के कारण हाथी रथ का कुछ न बिगाड सका । भगदत्त ने श्री कृष्ण और अर्जुन पर भीषण चाण