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________________ ५०० जैन महाभारत का सारथि बडा कुशल था, ज्यो ही रथ दूर जा गिरा, उस ने दौड कर रथ को सीधा किया, घोडो को पकड कर पुनः जोडा और सात्यकि के पास ले आया। परन्तु रथ की कील कील हिल गई थी, वह युद्ध के काम का न था. आश्रय लेने के लिए सात्यकि उस पर चढ गया अवश्य पर दूर लेजा कर वह उतर गया और दूसरे रथ पर चढ गया। सुप्रतीक का क्रोध शात न हुआ था, उसने दूसरे पाण्डव पक्षीय सनिकों को मारा, रथ तोडे और घोडो को धाराशाही कर दिया। जो पदाति सामने पडता हाथी उसे ही उठा कर गेद की भाति फेक देता, जो रथ सामने आ जाता, उसे हो तोड डालता। इस प्रकार उसने नाश का ड का वजा दिया, चारो ओर तबाही सी आ गई। पाण्डव पक्षीय सैनिको मे भय मा छा गया। भगदत्त शान से हाथी पर बैठा पाण्डवो के नाश की इस लीला पर गर्व कर रहा था, मानो इन्द्र अपने ऐरावत गज पर विराजमान होकर असुरों का नाश कर रहे हों। इतने ही मे भगदत्त ने देखा कि सामने से बाण वरसाता भीमसेन का रथ उसको पोर बढ़ता पा रहा है। भीम अपने घनुप से पने बाणो की वर्षा कर रहा था। भगदत्त ने अपना हाथी उसी ओर बढ़ा दिया, स्वय बाण वर्षा करनी श्रारम्भ कर दी। सुप्रतीक ने जब अपने वरी को रथ पर सवार देखा उसकी आखो मे खून उतर आया। जाते ही रथ पर सूण्ड को गदा की भाति मारने लगा, कुछ ही देरी में रथ की बुरजी तोड डाली और इतने ज़ोर की चिघाड़ मारी कि उसे सुनकर भी भीमसेन के रथ के घोडे भयभीत होकर भाग पड । उस समय इतनी धूल उड़ रही थी कि आकाश की ओर पृथ्वी से बादल से उटते प्रतीत होते। बार बार सुप्रतीक की कलेजे को कम्पित कर डालने वाली चिंघाडे उठ रही थी. यह चिंघाडे सशप्तको का मुकाबला करते हुए अर्जुन के कान मे भी पड़ी। सुन कर वह स्तब्ध रह गया। इधर देखा और श्री कृष्ण से वोला"मधु सूदन ! रण क्षत्र मे धूल ही धूल उड़ रही है। हाथियो की चिधाड़ सुनाई दे रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि शूर भगदत्त ने अपने मुप्रतीक हाथी पर सवार होकर भयकर आक्रमण कर दिया
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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