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जैन महाभारत
द्रोण का कुछ विगाड़ -पाता, उस के ही प्राण पखेरु द्रोणे के बाणो से उड़ गए। - ., द्रोण आगे बढते ही चले गए। उनके प्रवल वेग को रोकने केलिए साहस कर के वसुधान आया और वह भी यमलोक पहुंचा। यधामन्यु, सात्यकि, शिखण्डी, उत्तमौजा, आदि कितने ही महारथियो को तितर बितर करते हुए द्रोणाचार्य युधिष्ठिर के निकट पहुच गए। उस समय अपने प्राणों का मोह त्याग कर द्रुपद राज का एक और पूत्र पाचाल्य विजली की भांति द्रोण पर टूट पड़ा। वह कितनी ही देरि तक भीषण संग्नाम करता रहा। पर अन्त मे वह विल्कुल उसी प्रकार अपने रथ से नीचे लुढक गया, जसे आकाश से कोई तारा टूटता है। ." उस समय द्रोणाचार्य का अद्भुत रण कौशल देख कर दुर्यो
घन को अपार हपं हुआ। वह कर्ण से वोला-'कर्ण द्रोणाचार्य 'का पराक्रम तो देखो। पाण्डवो की सेना को कैसे मूली गाजरो की
भांति काटते हुए आगे बढ रहे हैं। सारे क्षेत्र मे जो शव ही शव दिखाई देते हैं और रक्त की जो नदी सी बह रही है, वह सब द्रोणा
चार्य का ही प्रताप है। मैं कहता हू अव पाण्डव अवश्य ही परास्त 'हो जायेंगे।"
इधर दुर्योधन ने यह बात कही, उधर भीमसेन, सात्यकि, युधामन्यु, उतमौजा, द्रुपद, विराट, शिखडी, धृष्टकेतु, आदि बहुत से वीर द्रोणाचार्य के सम्मुख आगए और बडा ही भयकर आक्रमण कर दिया।
उधर कर्ण दुर्योधन की बात का उत्तर देते हुए बोला"दुर्योधन ! पाण्डव यूं ही हार मानने वाले नही। वे इतनी जल्दी रण से पीछे हटने चाले । वे कभी उन यातनापो को नही भूल सकते • जो उन्हें विष से, आग से और जुए-के खेल से पहुंची थी। वनवास
और अज्ञात वास मे हुए उन के हृदय में घाव अभी तक रिस रहे होगे। वे उन सब यातनाओं को भूलने वाले नही। वे अन्तिम क्षण तक मुकाबला करेंगे। और भीमसेन तथा नकुल सहदेव अपने प्राणा की आहुति देकर भी युधिष्ठिर की रक्षा करेंगे। वह देखो पाण्डत "-पक्षीय कितने ही वीरो ने एक साथ मिल कर द्रोणाचार्य पर आक्रमण कर दिया है, वे द्रोण के आगे लोहे की दीवार बन गए हैं ।