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________________ - बारहवां दिन. " जाये कि वह अवकाश न ग्रहण कर सके मेरे निकट पहुचने का तो - युधिष्ठिर को बन्दी बनाया जा सकता है। इतनी बडी योजना बनाई है तो ऐसी भी योजना बनाओ कि अजुन का मुझ से मुकाबला हो और वह युधिष्ठिर की रक्षा को श्रा हो न सके।" ܢ ★ -भला ऐसा उपाय क्या हो सकता है ? मेरी समझ मे तो नही श्राता ।" + - "यदि कुछ बीर अपने प्राणो की आहुति देने को तैयार हो जाय तो यह भी सम्भव है । " " जानबूझ कर प्राण खोने को भला कौन तैयार होगा ?" "कुछ भी हो जब तक कुछ वीर संशप्तक व्रत धारण कर के अर्जुन को युद्ध के लिए नही ललकारेंगे, और अपने प्राणों का मोह "छोड कर यमलोक जाने की तैयारी करके अर्जुन के मुकाबले पर नही जायेंगे तब तक काम न चलेगा " द्रोणाचार्य ने सोचकर बताया । 'ऐसे वीर कौन हो सकते हैं ? आप ही बताए ।" ४५९ दुर्योधन के प्रश्न पर अभी द्रोणाचार्य विचार कर ही रहे थे कि सुशर्मा वहां से उठ गया। विचार मग्न द्रोण तथा दुर्योधन को इस का आभास भी न हुआ । - कुछ देर तक दुर्योधन तथा द्रोणाचार्य मे विचार विमर्श होता रहा, पर उन्होंने संशप्तक व्रत धारन करके युद्ध करने के लिए तैयार हो सकने वाले वीरो को न खोज पाये । रात्रि यौवन की ड्योढी पर पग रखने वाली थी, दिन भर युद्ध करने के कारण सभी थके हुए थे फिर भी द्रोण तथा दुर्योधन का नीद कहा, वे तो युद्ध की योजना बनाने और अपनी योजना की सफलता का उपाय खोजने मे तल्लीन थे । सुशर्मा ने कुछ देर बाद शिविर मे पग रखा । सुशर्मा चाहर से आते देखकर कदाचित तब द्रोण को मान हुआ कि सुशर्मा बिना कुछ कहे सुनें ही वहा से चला गया था । सुशर्मा ने विनीत भाव से कहा - ""गुरु देव ! आपको चिन्तित रहने की श्रावश्यकता नहीं । मैंने आपकी समस्या हल कर दी हैं । मेरे देश के वीर संशप्तक-व्रत धारण करके कल अर्जुन
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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