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युधिष्ठिर को जीवित पकडने की चेष्टा
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उनके निकट पहुच गए। धृष्ट द्युम्न ने द्रोण को रोकने की हजार चेप्टा की पर किसी प्रकार भी द्रोण को न रोक पाये । उनका प्रचड वेग किसी के रोके नही रुकता था।
___ कौरव पक्षीय वीरो ने द्रोण को युधिष्ठिर के निकट पहूचते हुए देखकर ही शोर मचा दियायुधिष्ठिर पकडे गए, युधिष्ठिर पकडे गए। . इस आवाज से सारा कुरुक्षेत्र गूज उठा। भागते हुए कौरव सनिक रुक गए । पाण्डव वीरो की गति मन्द पड़ गई। भीमसेन की भुजाए शिथिल सी पड गई ।
इतने ही में अनायास ही अर्जुन उधर आ पहचा। द्रोणाचार्य द्वारा बहाई रक्त की नदी को पार करता, हडियो और शवो के ढेरो को लाघता और तीव्र गति से पृथ्वी को कपाता हुआ अर्जुन का रथ वहा आ खडा हुआ। श्री कृष्ण ने ललकारा-"देखते क्या हा धनजय । चलाओ वाण । द्रोण तुम्हारे गुरु नही इस समय मुख्य शत्रु हैं।" ।।
द्रोण देखते ही तनिक देरि के लिए तो सन्न रह गए। श्री कृष्ण को ललकार सुनकर अर्जुन ने आवेश मे आकर जो गाण्डीव धनुष से वाणो की वर्षा प्रारम्भ की है, तो देखते ही देखते बाणों की बौछार हो गई। इतनी तीव्र गति से बाण चल रहे थे कि यह पता ही नहीं चलता था कि अर्जुन कब तीर चढ़ाता है, और कब घाड देता है। बाणो के मारे द्रोण के प्रागे अधेग सा छा गया। उसा समय अर्जुन ने एक ऐसा अस्त्र प्रयोग किया कि जिसके छूटते हा चारो ओर धुए और अधकार का बादल सा फैल गया, द्रोणाचार्य अपने शिष्य के इस भीषण मात्रमण के मारे पीछे हट गए। र अर्जुन आगे बढ़ता रहा, तभी द्रोण की रक्षा के लिए कई कारव महारथी या डटे। अर्जुन सभी को एक साथ हटाता रहा। उस सेवा दिन समाप्त होने वाला था पश्चिम दिशा में लाली फैल हा था, सूर्य किरणे पथ्वी से विदा ले रही थी और अर्जुन के बाणो:: "आग कोरव वीरः पीछे हटने पर विवश थे, बल्कि वार वार प्राकाश की ओर देखते थे।
द्रोण ने युद्ध की समाप्ति का बिगुल बजवा दिया। और पाण्डवो ने विजय के वाजे बजाते प्रारम्भ कर दिए। कौरव सेमा ५९ भय छा गया। परन्तु पाण्डव पक्षीय सैनिक बड़ी शान से अपने अपने शिविर को लौट चले। सब से पीछे थे कृष्ण और अर्जुन ।